पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को जब राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई, उसके बाद कुछ घटनाक्रम के समांतर खासतौर पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के रुख से यह लगा कि पार्टी ने फिलहाल अंदरूनी कलह को काबू में कर लिया है। लेकिन अब एक बार फिर हड़बड़ी से भरी या फिर अवांछित बयानबाजियों की वजह से न केवल सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच, बल्कि राज्य स्तर पर पार्टी के भीतर घमासान उठता दिख रहा है।
दरअसल, कुछ दिन पहले सिद्धू के दो सलाहकारों ने कश्मीर और पाकिस्तान जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मसलों पर टिप्पणी करते हुए यह ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा कि इसके असर क्या हो सकते हैं। सिद्धू के एक सलाहकार ने जहां अमरिंदर सिंह के पाकिस्तान से संबंधित बयान पर सवाल उठाया, वहीं दूसरे ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर विवादित बयान दे दिया। यह जगजाहिर है कि ये दोनों फिलहाल राजनीतिक रूप से कितने संवेदनशील मुद्दे हैं। बल्कि इस पर घोषित रुख का असर सीधे-सीधे जनसमर्थन पर पड़ता है। यही वजह है कि देश की कोई भी राजनीतिक पार्टी इन मुद्दों पर रुख तय करते हुए लोकप्रिय धारणाओं का खयाल रखती है।
इसलिए पंजाब में चुनाव नजदीक होने के मद्देनजर अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को अपने सलाहकारों को काबू में रखने की सलाह दी तो उसकी अहमियत समझी जा सकती है। समस्या यह है कि वक्त के तकाजे के विपरीत पार्टी के दोनों खेमे अब भी इस बात का खयाल रखना जरूरी नहीं समझ रहे कि उनके बीच इस तरह के टकराव का आम जनता के बीच क्या संदेश जाएगा। हालांकि सिद्धू ने अपने सलाहकारों को विवादित मसलों पर सफाई मांगने के लिए तलब किया, मगर उन्हें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि कांग्रेस ने अगर उन्हें राज्य में पार्टी की डोर सौंपी है, तो उसका मतलब यह भी है कि वे जनसमर्थन को या तो बनाए रखें या फिर मजबूत करें।
विडंबना यह है कि कुछ समय पहले सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच जो तीखा टकराव देखने में आया था, उसके सुलझने और सामान्य हो जाने की खबर के बाद अब भी उनके समर्थकों के बीच एक दूसरे को कमतर साबित करने की बेमानी कोशिशें चलती रहती हैं। सवाल है कि प्रत्यक्ष दिख रहे अपने मकसद में अगर दोनों खेमे कामयाब हो भी जाएं तो अपने स्तर पर पार्टी और उसकी राजनीति को क्या देंगे!
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले नवजोत सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तनातनी एक सीमा से ज्यादा हो गई थी और लगने लगा था इस टकराव की कीमत पार्टी को भारी नुकसान के रूप में चुकानी पड़ेगी। इसके मद्देनजर शीर्ष स्तर से होने वाली कवायदों के बाद राज्य में सरकार और पार्टी के नेतृत्व के ढांचे को लेकर एक संतुलनवादी रुख अख्तियार किया गया। सिद्धू को राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद एक मौके पर अमरिंदर सिंह काफी नरम भाव में दिखे, जिससे यह लगा कि दोनों खेमों में सुलह हो गई है।
लेकिन सिद्धू के सलाहकारों या समर्थकों और अमरिंदर सिंह के बीच ताजा खींचतान से साफ है कि कांग्रेस राज्य में अभी भी एक तरह की अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। पंजाब के किसानों ने जिन मुद्दों को लेकर व्यापक आंदोलन छेड़ा हुआ है, वह राज्य में सत्ता में होने के नाते कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। जाहिर है, आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता के बीच जाने के लिहाज से पार्टी पहले ही बहुस्तरीय चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में आंतरिक कलह की यह तस्वीर कांग्रेस के लिए अतिरिक्त परेशानी पैदा करने वाली है।