राजमार्गों के जाल और साथ ही बढ़ते टोल नाके। इन टोल नाकों पर फास्टैग प्रणाली का समूचा ढांचा संचालन की खामियों के कारण सवालों के घेरे में है। सरकार ने फास्टैग आधारित तीन हजार रुपए वाले वार्षिक पास की योजना का एलान किया है और दावा किया है कि इससे कई तरह के झंझटों से लोगों को मुक्ति मिल जाएगी।

इस पास में पूरे साल टोल टैक्स देने की जरूरत नहीं है, लेकिन शर्तें भी लगाई गई हैं। इस योजना के तहत एक साल में दो सौ चक्कर लगा सकते हैं। यह योजना अभी सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों एवं पूर्वोत्तर के टोल प्लाजा पर ही मान्य होगी। राज्य मार्गों के अंतर्गत आने वाले टोल नाकों पर यह नया पास नहीं चलेगा।

यह केंद्र सरकार की योजना है और इसमें राज्यों को जोड़ने की कवायद दुरुह है। इसके लिए ढांचा तैयार करना आसान नहीं होगा। यह तो नई योजना की बात हुई। दरअसल, फास्टैग की पूरी प्रणाली को लेकर ही उपभोक्ताओं की ढेरों शिकायतें हैं। उन शिकायतों की न तो कहीं सुनवाई हो रही है और न ही किसी स्तर पर चीजें ठीक करने की कोशिश दिख रही है।

आम उपभोक्ता खामियाजा भुगत रहा है। फास्टैग के पूरे तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही का घोर अभाव दिखता है। इसके लिए कोई विनियमन नहीं है, न तो कोई नियामक।

देश में 39 बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को फास्टैग जारी करने का अधिकार दिया गया है। क्या ये लोग अपनी जिम्मेदारी निभा पा रहे हैं। जब कोई उपभोक्ता अपनी समस्या लेकर बैंक के पास जाता है तो उसे यह कहकर टाल दिया जाता है कि काम ‘तीसरी पार्टी’ के पास है। अब उपभोक्ता तीसरी पार्टी को कहां ढूंढने जाए। खराब हुआ फास्टैग स्टीकर, खाते में से बार-बार राशि कट जाना, दोगुना टोल भुगतान, सर्वर की गड़बड़ी, इस तरह की खामियों की आखिर कौन लेगा जिम्मेदारी।

कैसे उपभोक्ता को अपनी परेशानियों से निजात मिलेगी। सरकार के टोल संग्रह के आंकड़े में बढ़ोतरी हो रही है। यह अच्छी बात है, लेकिन बढ़िया सेवा की उम्मीद तो उपभोक्ता करेगा ही।

इसमें दो राय नहीं कि ढांचा अच्छा है। इससे किसी को इनकार नहीं हो सकता। लेकिन खामियां भी हैं, जिनसे आम उपभोक्ता परेशान हो रहा है। इस योजना का लाभ तभी मिल सकता है, जब सड़कें दुरुस्त हों और लोगों को अपनी यात्रा में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न आए। लेकिन हैरत की बात है कि फास्टैग प्रणाली से पांच हजार करोड़ का राजस्व जमा करने वाली कंपनी का कोई ऐसा दफ्तर नहीं, जहां कोई उपभोक्ता पहुंच सके और अपनी बात रख सके।

टोल नाकों पर लोग दिखते हैं, लेकिन वे उपभोक्ताओं के प्रति कितने जिम्मेदार होते हैं इसको लेकर सवाल हैं। उन लोगों के लिए जटिलता और बढ़ जाती है, जो पहली बार फास्टैग ले रहे हैं या जिन्हें इसकी प्रक्रिया के बारे में सटीक जानकारी नहीं है।

अनधिकृत विक्रेता आसानी से अपने चंगुल में फांस लेते हैं। इस तरह के लोगों पर अंकुश कैसे लगे। राजमार्गों का चमचमाता तंत्र विकसित करना ही पर्याप्त नहीं है। राजमार्गों की व्यवस्था तभी मजबूत कही जाएगी, जब इस्तेमाल के लिए सुचारु व्यवस्था होगी, मजबूत तंत्र खड़ा किया जाएगा और उपभोक्ताओं को अपनी यात्रा में कोई दिक्कत नहीं होगी।