मुंबई में सोमवार को आई तेज आंधी और बेमौसम बारिश के दौरान कई लोगों की मौत को किसी हादसे की तरह ही देखा जाएगा। मगर सच यह है कि इसके पीछे संबंधित महकमों की बहुस्तरीय लापरवाही मुख्य वजह है। विडंबना यह है कि ऐसे हादसों की वजहें जगजाहिर होती हैं, मगर उसकी ओर से आंखें मूंद ली जाती हैं और मामला जब तूल पकड़ लेता है तब अफसरों की नींद खुलती है। वरना क्या वजह है कि जहां बारिश-तूफान से बचने के लिए या किसी अन्य मौके पर काफी लोग इकट्ठा हो सकते हैं, वहां ऐसे विशाल होर्डिंग लगाने की छूट दी जाए, जो तेज आंधी में गिर जा सकता था।

पेट्रोल पंप के पास खड़ा सौ फुट से ज्यादा लंबा बिलबोर्ड गिरा था

गौरतलब है कि मुंबई में धूलभरी आंधी के दौरान घाटकोपर में एक पेट्रोल पंप के पास खड़ा सौ फुट से ज्यादा लंबा बिलबोर्ड गिर गया। वहीं खड़े सौ से ज्यादा लोग उसकी चपेट में आ गए, जिनमें चौदह लोगों की मौत हो गई और चौहत्तर घायल हो गए। प्रथम दृष्टया इस हादसे की वजह तेज आंधी को कहा जा सकता है। मगर केवल बिगड़े मौसम पर इसकी जिम्मेदारी नहीं थोपी जा सकती।

हैरानी की बात यह है कि मुंबई में एक मुख्य जगह पर लगे इस होर्डिंग को बाद में अवैध बताया गया, जिसे लगाने के लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी। विचित्र है कि मुंबई जैसे महानगर में, जहां किसी इलाके में फुटपाथों तक पर लगने वाली दुकानों के वैध-अवैध होने के बारे में प्रशासन को पूरी जानकारी रहती हो, वहां सौ फुट से ज्यादा ऊंचा होर्डिंग खड़ा था और उसके अवैध होने के बारे में जानकारी हादसे के बाद सामने आई।

अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के दौरे के बाद शहर में सभी होर्डिंगों के संरचनात्मक आडिट का आदेश दिया गया है, बृहन्मुंबई महानगर पालिका राजकीय रेलवे पुलिस की जमीन पर लगे बाकी सभी होर्डिंग को हटाएगी और पुलिस ने होर्डिंग के मालिक पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। शहरों-महानगरों में हर तरफ अवैध होर्डिंग खतरनाक तरीके से खड़े दिख जाते हैं। मगर समूचे प्रशासन के स्तर पर सक्रियता आखिर किसी हादसे और उसमें लोगों के मारे जाने के बाद ही क्यों दिखाई देती है? अगर संबंधित महकमों ने समय रहते अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी के प्रति ईमानदारी बरती होती तो शायद इस हादसे को रोका जा सकता था।