देश भर में जब भी लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा के लिए चुनाव की घोषणा होती है, तो आचार संहिता लागू होने के बाद अमूमन हर राज्य से निर्वाचन आयोग की ओर से चलाए गए अभियान के तहत भारी मात्रा में शराब, अवैध नकद राशि, मादक पदार्थ आदि की जब्ती की खबरें आती हैं। दरअसल, इस अभियान का मकसद यह होता है कि मतदाताओं के बीच नकदी या शराब आदि बांट कर मतदान की प्रक्रिया को किसी खास दल या उम्मीदवार के प्रलोभन में आकर प्रभावित होने से रोका जाए।
आदर्श और सिद्धांत रूप में निर्वाचन आयोग की यह कवायद लोकतंत्र की मजबूती को कायम रखने का अभियान है। मगर सवाल है कि बहुत लंबे समय से और लगभग हर चुनाव के पहले इस तरह के अभियान में भारी मात्रा में अवैध वस्तुओं और पैसों की जब्ती के बावजूद अब तक इस चलन पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकी है। निर्वाचन आयोग ऐसी ठोस व्यवस्था क्यों नहीं कर सका है, जिससे कोई भी दल या उसके उम्मीदवार चुनावी रिश्वत के रूप में पैसे, शराब, मादक पदार्थ या फिर कोई वस्तु देकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश न करे।
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कल पहले चरण का मतदान है। उससे पहले चुनाव आयोग ने जिस तरह अपने अभियान के तहत अवैध सामान और नकदी की जब्ती की खबर दी है, उससे साफ है कि बिहार की चुनाव प्रक्रिया को स्वस्थ मतदान के बजाय अन्य कारकों से प्रभावित करने की कोशिश हो रही है।
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आयोग की एक रपट के मुताबिक, बिहार में अब तक 9.62 करोड़ रुपए नकद, 42.14 करोड़ रुपए मूल्य की शराब, 24.61 करोड़ रुपए मूल्य के मादक पदार्थ, करीब छह करोड़ रुपए की कीमती धातुएं और इसके अलावा 26 करोड़ रुपए से अधिक की मुफ्त बांटी जाने वाली अन्य वस्तुएं जब्त की गई हैं। यह कोई छिपी बात नहीं है कि कुछ दल या उम्मीदवार जब इससे आशंकित होते हैं कि लोगों के बीच उनका पर्याप्त समर्थन नहीं है और वे चुनाव हार सकते हैं, तब वे मतदाताओं को रिझाने के लिए गैरकानूनी तरीके से नकदी, शराब या अन्य मादक पदार्थ मुफ्त बांटने का सहारा लेते हैं।
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जाहिर है, ऐसी कवायदें स्वच्छ और स्वतंत्र मतदान को प्रभावित करके लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश हैं। चुनाव आयोग की ओर से इस तरह की हरकतों के खिलाफ अभियान तो चलाए जाते हैं और बड़े पैमाने पर अवैध राशि और सामान की जब्ती की जाती है, कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया जाता है। मगर आम लोगों तक यह खबर शायद कभी नहीं पहुंच पाती है कि व्यापक स्तर पर जब्ती के बाद आयोग ने उसके वास्तविक आरोपियों को कानून के कठघरे में खड़ा कराया या नहीं, उसके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हुई या नहीं।
हर बार केवल अवैध सामग्री की जब्ती और कुछ निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को पकड़े जाने तथा उन्हें संचालित करने वाले बड़े नेताओं को बख्श दिए जाने का ही नतीजा है कि चुनावों के दौरान मतदाताओं को गलत तरीके से अपने पक्ष में करने के लिए गैरकानूनी हरकतों का सहारा लिया जाता है। बिहार में जब्ती के संदर्भ में आयोग को सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि शराबबंदी वाले राज्य में अवैध तरीके से इतने बड़े पैमाने पर शराब बांटने की कोशिश कैसे चल रही थी। यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के सामने एक बड़ी चुनौती है और निर्वाचन आयोग को वर्षों से बदस्तूर जारी इस गैरकानूनी चलन को स्थायी तौर पर खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
