प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में पर्चाफोड़ की बढ़ती घटनाओं से राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए की विश्वसनीयता गंभीर रूप से प्रश्नांकित हुई है। मगर चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट में हुई धांधली से पूरी व्यवस्था पर अंगुलियां उठनी शुरू हो गई हैं। अच्छी बात है कि इस मामले में प्रधानमंत्री ने संसद को आश्वस्त किया कि युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। परीक्षा प्रणाली को पुख्ता और भरोसेमंद बनाने के उपाय किए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर विपक्ष लगातार सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा था। एक पूरे दिन लोकसभा में बहस कराने की मांग कर रहा था।

प्रधानमंत्री के बयान के बाद अब इस पर कुछ विराम लगा है। मगर यह केवल आश्वासन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, इसे व्यावहारिक स्तर पर दिखना भी चाहिए। शुरू से ही इस मामले को एक तरह से दबाने का प्रयास किया जाता रहा। एनटीए लगातार कहता रहा कि इस परीक्षा में कोई धांधली नहीं हुई है। जिन केंद्रों पर परीक्षार्थियों को पर्चे मिलने में बाधा पैदा हुई, उन्हें कृपांक दिए गए। इसकी वजह से अनेक छात्रों को पूरे के पूरे अंक मिल गए। इसकी जांच के लिए समिति गठित कर दी गई है।

मगर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में अपारदर्शिता और कुछ ही केंद्रों से सर्वाधिक और पूरे के पूरे अंक पाने वाले छात्रों के तथ्य उजागर हुए, तो संदेह और गहरा होता गया। बिहार और गुजरात में कुछ पर्चाफोड़ गिरोहों पर शिकंजा कसा, तो हैरान करने वाले तथ्य उजागर होने शुरू हो गए। हालांकि मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए रखा गया है, इसमें जांच हो रही है, कई आरोपी पकड़े भी गए हैं। मगर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि सरकार ने शुरू में ही हस्तक्षेप क्यों नहीं किया। जो काम सरकार को करना चाहिए था, उसके लिए अदालत का दरवाजा क्यों खटखटाना पड़ा। परीक्षा रद्द करने को लेकर सरकार क्यों हिचकती रही, जबकि उसी दौरान दूसरी कई परीक्षाएं रद्द कर दी गईं।

पर्चाफोड़ गिरोहों के कुछ लोगों के पकड़े जाने और उनके कबूलनामे से जाहिर हो चुका है कि नीट की परीक्षा में पारदर्शिता नहीं बरती गई। आरोप है कि नकल कराने वालों ने कुछ छात्रों से भारी रकम वसूली और उनकी उत्तर पुस्तिकाओं पर जवाब अपनी तरफ से भरवाए। अभी तक यही आरोप लगते रहे हैं कि नकल कराने वाले परीक्षा से पहले ही पर्चा बाहर कर लेते और विद्यार्थियों को उनके उत्तर रटा देते रहे हैं। मगर यह मामला उससे कहीं आगे निकल गया लगता है।

बताया जा रहा है कि नकल माफिया ने जिन विद्यार्थियों से पैसे लिए थे, उन्हें कुछ तय परीक्षा केंद्रों पर बिठाया और उनकी उत्तर पुस्तिकाओं में सही उत्तर भरवाए। इससे न केवल एनटीए की प्रश्नपत्रों की सुरक्षा में लापरवाही, बल्कि सीधे-सीधे इस धोखाधड़ी में उसकी संलिप्तता जाहिर होती है। जिस संस्था को इस मकसद से गठित किया गया था कि वह प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में धांधली पर नकेल कसेगी, उसी पर अगर इस स्तर की धांधली में सहयोग का आरोप लग रहा है, तो भला कहां तक उस पर भरोसा कायम रह सकता है। प्रधानमंत्री ने परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाने का आश्वासन तो दिया है, मगर जब तक एनटीए की कार्यप्रणाली को भरोसेमंद नहीं बनाया जाता, उसके द्वारा आयोजित परीक्षाओं को लेकर भरोसा पैदा होना मुश्किल रहेगा।