परीक्षा का तनाव पिछले कुछ सालों से बच्चों में कुछ अधिक देखा जा रहा है। खासकर बोर्ड परीक्षाओं को लेकर बहुत सारे बच्चों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है। परीक्षा परिणामों के बाद तो और चिंताजनक स्थिति देखी जाती है। ऐसे में वर्षों से उपाय तलाशे जा रहे थे कि किस तरह विद्यार्थियों में परीक्षा का तनाव कम किया जा सके। इसके मद्देनजर पहले पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया, फिर प्रश्नपत्रों को व्यावहारिक और अपेक्षाकृत आसान बनाया गया। मगर फिर भी विद्यार्थियों पर बोर्ड परीक्षाओं का मनोवैज्ञानिक दबाव कम करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। इसलिए नई शिक्षा नीति घोषित करने के साथ ही घोषणा कर दी गई कि बोर्ड की परीक्षाएं दो चरण में आयोजित होंगी।

विद्यार्थियों पर परीक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव कम होगा

अब शिक्षा मंत्रालय ने इसकी रूपरेखा पेश कर दी है। नई पाठ्यचर्या की घोषणा भी कर दी गई है। माना जा रहा है कि इस तरह विद्यार्थियों पर परीक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव कम होगा और उन्हें अपना प्रदर्शन सुधारने का मौका दो बार मिलेगा। दो चरण में परीक्षा होने से विद्यार्थी पर परीक्षा की तैयारी करने का दबाव भी कम होगा, क्योंकि पहले चरण में पाठ्यक्रम के जिस अंश की वह परीक्षा दे चुका होगा, उससे दूसरे चरण में प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे। इस तरह विद्यार्थी में परीक्षा की तैयारी की निरंतरता भी बनी रहेगी।

बोर्ड परीक्षा के साथ-साथ विद्यालयी प्रदर्शन के अंक भी मिलते हैं

हालांकि परीक्षा का तनाव कम करने के मकसद से पहले ही दसवीं और बारहवीं में विद्यार्थियों के स्कूली प्रदर्शन को भी उनके मूल्यांकन से जोड़ दिया गया था। इस तरह उन्हें बोर्ड परीक्षा के साथ-साथ विद्यालयी प्रदर्शन के अंक भी मिल जाते थे। दसवीं में केवल उसी साल के पाठ्यक्रम से सवाल पूछे जाते हैं, जबकि नौवीं का मूल्यांकन स्कूल खुद करता है। इस तरह पहले से ही बच्चों में बोर्ड परीक्षाओं का भय समाप्त करने का प्रयास चल रहा है।

अपनी रुचि के पाठ्यक्रम का चुनाव करने का अवसर उपलब्ध होगा

अब दो चरण में परीक्षा होने से उन्हें मनोवैज्ञानिक राहत मिलेगी। इसमें नई पाठ्यचर्या भी उनकी काफी मदद करेगी, क्योंकि इसमें अब बच्चों को अपने परिवेश से सीखने और अपनी रुचि के पाठ्यक्रम का चुनाव करने का अवसर उपलब्ध होगा। अभी तक पाठ्यक्रम ऊंची नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता था, जबकि अब बच्चों के कौशल विकास पर अधिक जोर होगा। इस तरह पाठ्यक्रम के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।

दरअसल, बहुत सारे विद्यार्थियों में परीक्षाओं को लेकर भय इसलिए पैदा होता है कि उन्होंने ठीक से पढ़ाई नहीं की होती है। ठीक से पढ़ाई वही विद्यार्थी नहीं कर पाते हैं, जिनकी पाठ्यक्रम में रुचि नहीं होती। वे अभिभावक और स्कूल के दबाव में पढ़ रहे होते हैं। उनका मन कुछ और करने-पढ़ने का होता है। ऐसे बच्चों के लिए नए पाठ्यक्रम में चुनाव के बेहतर विकल्प होंगे। जो बच्चे बेहतर रोजगार के लिए या फिर ऊंची तकनीकी उपलब्धि की मंशा से पढ़ाई कर रहे होते हैं, उनके लिए भी पहले की तरह सीखने-पढ़ने के अवसर होंगे।

प्रतियोगी परीक्षाओं और विश्वविद्यालयों में दाखिले आदि को लेकर पहले ही केंद्रीकृत व्यवस्था है, इसलिए जो विद्यार्थी उच्च शिक्षण के लिए जाना चाहते हैं, उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होगी। दाखिले आदि में ऊंचे अंकों का दबाव पहले ही काफी कम कर दिया गया है। हालांकि परीक्षाओं को आसान बनाने से विद्यार्थियों के सीखने-पढ़ने के अनुशासन पर भी असर पड़ता है, वह शिथिल न पड़ने पाए, इसका ध्यान तो रखना ही पड़ेगा।