कोरोना संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए जितने तरह के एहतियाती उपाय हो सकते थे, वे किए गए। उसका लाभ भी नजर आ रहा है। मगर जो संक्रमित हो चुके या संदेह के दायरे में हैं, उनकी निगरानी, जांच, उपचार आदि में जैसी लापरवाहियों की शिकायतें मिल रही हैं, वह चिंता का विषय है। शुरू-शुरू में चूंकि बहुत जल्दी में व्यवस्थाएं करनी पड़ी थीं, इसलिए उस दौरान पाई गई कमियों को नजरअंदाज कर दिया गया। उम्मीद की गई कि व्यवस्थाएं धीरे-धीरे बेहतर होंगी, लोगों को असुविधाएं कम होंगी, पर एक महीना से अधिक गुजर जाने के बाद भी शिकायतें आनी बंद नहीं हुई हैं, तो यह सरकारों के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। खासकर कोरोना संक्रमितों के लिए बने एकांतवास केंद्रों में खाने-पीने-रहने संबंधी शिकायतें अधिक मिल रही हैं। कई जगह ये केंद्र लोगों के लिए यातनादेह साबित हो रहे हैं। अनेक केंद्रों से कोरोना मरीजों के चोरी-छिपे पलायन कर जाने की खबरें आई हैं। सबसे चिंताजनक खबर मध्यप्रदेश के सीधी की है, जहां एक तीस वर्ष के युवक ने एकांतवास में हो रही असुविधाओं से आजिज अकर खुदकुशी कर ली। इसके पहले भी एक-दो जगहों से निराश मरीजों के खुदकुशी की खबरें मिल चुकी हैं।
विचित्र है कि एक तरफ लोगों को समझाया जाता है कि उन्हें इस विषाणु के संक्रमण से घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं, चौदह दिनों के एकांतवास में रख कर उन्हें उपचार से ठीक किया जा सकता है। रोज स्वस्थ हो चुके कोरोना संक्रमितों के आंकड़े जारी किए जाते हैं कि लोग उनसे प्रेरणा ले सकें। लोगों से अपील की जाती है कि अगर उनमें कोरोना के लक्षण नजर आते हैं, तो वे छिपाएं नहीं, खुद सामने आएं। दूसरी तरफ यह स्थिति है कि एकांतवास केंद्रों में गंदगी, समुचित भोजन और पानी न मिल पाने आदि की शिकायतें बढ़ रही हैं। कई केंद्रों में भर्ती मरीज इसे लेकर हंगामा कर चुके हैं। यह शिकायत केवल मरीजों तक सीमित नहीं है। कई जगह कोरोना संक्रमण से पार पाने के लिए तैनात स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी रहने-खाने की समुचित व्यवस्था नहीं है। उन्हें जरूरी और गुणवत्तापूर्ण सुरक्षा साजो-सामान तक उपलब्ध न कराए जा सकने की शिकायतें शुरू से मिल रही हैं। उन्हें ऐसी जगहों पर ठहराया जा रहा है, जिसे किसी भी रूप में गरिमापूर्ण नहीं कहा जा सकता। इसे लेकर कुछ चिकित्सकों ने तल्ख एतराज जताया और भारतीय चिकित्सा संघ ने भी गंभीर आपत्ति दर्ज की तो कुछ जगहों पर उनके रहने का ठीक-ठाक इंतजाम किया जा सका।
दरअसल, एकांतवास केंद्र सघन आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्कूलों या दूसरे सरकारी भवनों में बनाए गए हैं। उनमें से कई भवनों में न तो उचित शौचालय हैं और न पीने के पानी की व्यवस्था। वहां जो भोजन मिलता है, वह भी गुणवत्तापूर्ण नहीं होता। ऐसे में कई मरीजों के लिए यह व्यवस्था यातनादेह मालूम पड़ती है। इन्हीं एकांतवास केंद्रों के आसपास उनसे संबद्ध चिकित्साकर्मियों के रहने की भी व्यवस्था कर दी जाती है। कोरोना संक्रमित पहले ही भय के वातावरण में जीवन बिता रहे होते हैं, तिस पर उन्हें ठीक से भोजन-पानी और रहने की जगह न दी जाए, तो उनकी निराशा बढ़नी स्वाभाविक है। सरकारों का जोर सिर्फ जांच, संक्रमितों की पहचान और उन्हें एकांतवास में भेजने पर सीमित नहीं होना चाहिए, मरीजों को ऐसा वातावरण देना भी उनकी जिम्मेदारी है, जिसमें वे इस विषाणु से साहसपूर्वक लड़ और उससे पार पा सकें।

