अपने अधिकारियों की गतिविधियों और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीसीसीआइ यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अनेक बार विवाद का विषय बना है। मगर एन श्रीनिवासन के अध्यक्ष रहते जिस तरह इस संस्था की साख गिरी वह पूरे क्रिकेट जगत के लिए शर्मनाक था। हालांकि श्रीनिवासन अब तक अपनी बेगुनाही साबित करने में जुटे हैं। सर्वोच्च अदालत से उनकी मांग है कि उन्हें बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद पर लौटने दिया जाए। इस पर अदालत ने उचित ही उनकी करतूतें याद दिलाते हुए बीसीसीआइ की गतिविधियों से दूर रहने को कहा है। बीसीसीआइ के संविधान के मुताबिक कोई भी दुबारा अध्यक्ष नहीं बन सकता, मगर श्रीनिवासन ने उस नियम को ही बदलवा दिया और दुबारा अध्यक्ष बन बैठे थे। यही नहीं, उन्होंने आइपीएल में अपनी एक टीम बना ली। उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन इसी टीम के अधिकारी थे, जिन्हें आइपीएल-6 में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग का दोषी पाया गया।
इस मसले पर विवाद बढ़ा तो सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीनिवासन के खिलाफ कड़ाई बरती। तब उन्होंने कुछ समय के लिए अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी। पर जल्दी ही वे इस दलील पर वहां आ विराजे कि उनके खिलाफ जांच कर रही समिति ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी। जबकि इस समिति का गठन खुद श्रीनिवासन ने किया था। यों बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने जो न्यायमूर्ति मुद्गल की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की, उसने भी श्रीनिवासन के खिलाफ सीधे कोई गंभीर आरोप नहीं पाया है। मगर अदालत ने हितों के टकराव का सवाल उठा कर उनकी बहाली का रास्ता जरूर रोक दिया है। श्रीनिवासन ने मुद््गल समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद पर अपनी बहाली का दावा पेश किया। मगर उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बीसीसीआइ अध्यक्ष रहते जब उन्होंने आइपीएल टीम बनाई और उनके दामाद उसे संचालित करते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए तो वे खुद को पाक-साफ कैसे कह सकते हैं? आइपीएल को बीसीसीआइ के कामकाज से अलग कैसे किया जा सकता है?
श्रीनिवासन को खुद नैतिक आधार पर क्रिकेट की गतिविधियों से दूर हो जाना था, मगर शायद ऐसी ईमानदारी उनमें नहीं है। ऐसा लगता है कि बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद पर लौटने की उनकी तड़प इसलिए है कि इस संगठन के जरिए वे क्रिकेट के अकूत धन से खेल सकें। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उन्हें आइसीसी यानी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में भी कोई पद नहीं लेना चाहिए, पर वे उसके अध्यक्ष बन गए। यह सब वे इसलिए कर सके कि उन्होंने हर जगह अपने माफिक लोगों को बिठा रखा था। समझना मुश्किल नहीं है कि बीसीसीआइ और आइसीसी के पदाधिकारी उनका खुला विरोध क्यों नहीं कर पाए। सबके अपने स्वार्थ जो सधते थे। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि क्रिकेट संघों को अनुभवी खिलाड़ियों के हाथों में सौंप दिया जाना चाहिए। उसने सुनील गावसकर का नाम भी सुझाया था। सर्वोच्च अदालत की कड़ाई के चलते ही श्रीनिवासन को बीसीसीआइ से दूर रखना संभव हुआ है। अगर सब कुछ क्रिकेट के प्रशासन तंत्र पर छोड़ दिया जाता तो शायद न सिर्फ श्रीनिवासन बीसीसीआइ की कुर्सी पर जमे रहते बल्कि सट््टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के मामले की वैसी जांच भी न हो पाती जैसी मुद्गल समिति ने की। मगर क्रिकेट के प्रशासन को कैसे पारदर्शी बनाए जाए, यह सवाल अभी बना हुआ है।
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