हाथरस बलात्कार मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो का आरोपपत्र एक तरह से उत्तर प्रदेश पुलिस के गाल पर तमाचा है। सीबीआई ने माना है कि इस मामले में युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। इसमें चार आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने युवती के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था। इस साल सितंबर में हाथरस की एक युवती से बलात्कार के बाद उसे मरणासन्न अवस्था में फेंक दिया गया था। जब युवती के परिजनों ने इस मामले की शिकायत थाने में दर्ज करानी चाही, तो पुलिस वालों ने रिपोर्ट लिखने में टालमटोल करते रहे।

जब मामले ने तूल पकड़ा तो कई दिन बीत जाने के बाद उसकी रिपोर्ट दर्ज कर चिकित्सीय जांच कराई गई। तब तक बलात्कार के प्रमाण काफी हद तक मिट चुके थे। जिला अस्पताल में युवती का इलाज कराया जा रहा था, मगर जब उसकी हालत बिगड़ी तो उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उसने दम तोड़ दिया। फिर उत्तर प्रदेश पुलिस ने शव परिजनों को सौंपने के बजाय, उनकी इजाजत के बगैर आनन-फानन रात के अंधेरे में उसका अंतिम संस्कार कर दिया। पुलिस के इस रवैए की स्वाभाविक ही चौतरफा निंदा हुई थी। तब प्रदेश सरकार ने मामले की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश की थी।

हाथरस मामले की हकीकत पर पुलिस शुरू से परदा डालने की कोशिश करती रही। उसका प्रयास था कि किसी तरह मामला रफा-दफा हो जाए। इसीलिए पहले प्राथमिकी दर्ज करने से बचती रही, फिर युवती के इलाज में लापरवाही बरती गई। जब मामला तूल पकड़ने लगा, तो पुलिस और प्रशासन तरह-तरह की कहानियां गढ़ कर आरोपियों को बचाने का प्रयास करते देखे गए। पुलिस ने पहले तो युवती के परिजनों को डरा-धमका कर चुप रखने का प्रयास किया।

फिर किसी तरह साबित करने की कोशिश की गई कि युवती को उसके परिवार वालों ने ही मारने की कोशिश की थी। जब विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो उन्हें हाथरस पहुंचने, पीड़ित परिवार से मिलने से रोकने की कोशिश की गई। यहां तक कि वहां के जिलाधिकारी पर भी आरोप लगे कि वे पीड़ित परिवार को धमका कर चुप कराने का प्रयास कर रहे थे। यह हैरान करने वाला प्रकरण था कि जिन लोगों पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी है, वही अन्याय की तरफ खड़े थे। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर पहले ही काफी अंगुलियां उठती रही हैं, हाथरस मामले में पुलिस-प्रशासन के रवैए ने उस आग में घी का ही काम किया।

अब सीबीआई के आरोपपत्र से बलात्कार और हत्या के दोषियों को तो दंड मिलने की उम्मीद जगी है, पर इस मामले में दोषी केवल वे चार युवक नहीं माने जा सकते। उन्हें बचाने और इस पूरे मामले पर मिट्टी डालने का प्रयास करने वाले भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। इससे पुलिस और प्रशासन की साख को जबर्दस्त चोट पहुंची थी। जिन लोगों पर सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है, अगर वही किसी आग्रह या प्रभाव में आकर अन्याय का साथ देंगे, तो फिर कानून-व्यवस्था को लेकर कितना भरोसा किया जा सकता है।

बलात्कार की शिकार हुई लड़की चूंकि समाज के निर्बल वर्ग की थी, इसलिए भी पुलिस उसके परिवार को दबाने और आरोपियों को बचाने का प्रयास करती देखी गई थी। उत्तर प्रदेश पुलिस का यह चेहरा भयभीत करने वाला है। वहां की सरकार पता नहीं सीबीआई के आरोपपत्र के बाद पुलिस का यह चेहरा बदलने का कितना प्रयास करेगी।