अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों की खबरें सबको अच्छी लगती हैं, लेकिन अगर इस चकाचौंध के बीच बहुत सारे लोगों को खाने-पीने के सामान में भी कटौती करनी पड़े, तब यह सोचने की जरूरत है कि आर्थिक विकास के दावों के दायरे में कौन है! अन्य जरूरी सामान के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की चढ़ी हुई कीमतों ने पहले ही आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था, लेकिन इस बीच पिछले कई महीनों से सब्जियों के दाम लगातार इस स्तर पर बने हुए हैं कि लोगों की थाली से सब्जियां भी गायब रहने लगी हैं। मुश्किल सिर्फ सब्जियों तक नहीं सिमटी है। इसका असर दूसरे खाद्य पदार्थों पर भी पड़ा है और अनाजों की खरीदारी के वक्त भी लोगों को अब थोड़ा रुक कर सोचना पड़ जाता है।

शाकाहारी थाली की कीमत में 20 फीसद की बढ़ोतरी

गौरतलब है कि बुधवार को जारी एक एजंसी की ताजा रपट के मुताबिक शाकाहारी थाली की कीमत में एक वर्ष पहले की समान अवधि की तुलना में बीस फीसद तक की बढ़ोतरी हो गई है। दरअसल, कम आय वर्ग के लोगों के लिए पिछले कई महीनों से खाने-पीने का सामान सहजता से खरीदना मुश्किल ही था। मगर अब स्थिति यह हो गई है कि ऐसे लोग अक्सर दिख जाते हैं, जो बाजार में सब्जियों की कीमतें पूछते हैं और बिना खरीदे मायूस मन के साथ आगे बढ़ जाते हैं। रपट के मुताबिक, अक्तूबर में प्याज की कीमतें सालाना आधार पर छियालीस फीसद बढ़ीं, जबकि आलू के दाम में इक्यावन फीसद का इजाफा हुआ। इसी तरह, टमाटर के भाव उनतीस रुपए प्रति किलोग्राम से आगे बढ़ते हुए एक वर्ष पहले की समान अवधि के मुकाबले चौंसठ रुपए प्रति किलोग्राम हो गए। टमाटर सौ रुपए प्रतिकिलो या इससे ज्यादा भाव पर भी बिका। अन्य कई हरी सब्जियां भी आमतौर पर अस्सी या सौ रुपए प्रति किलो बिक रही हैं।

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भोजन की थाली में सब्जियां एक तरह का संतुलन बनाती हैं। अब इनके लगातार महंगे बने रहने का असर दालों की कीमतों पर भी पड़ा है। सच यह है कि महंगाई एक दुश्चक्र की तरह लोगों के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है और एक समय तात्कालिक कारणों से बाजार में उतार-चढ़ाव के तौर पर देखी जाने वाली स्थितियां अब आम रहने लगी हैं।

एक समय कई बार लोग कुछ समय तक समझौता करके महंगाई की चुनौतियों का सामना कर लेते थे। लेकिन अब महंगाई में निरंतरता की वजह से संतुलित भोजन पहुंच से बाहर हो रहा है। एक ओर, रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में रखने के लिए कुछ कदम उठाता रहता है, तो दूसरी ओर सरकार आए दिन लोगों को भरोसा देती रहती है। हकीकत यह है कि पिछले कुछ वर्षों से रोजी-रोजगार की फिक्र में लोग यह भी भूलते जा रहे हैं कि उनकी थाली में न्यूनतम चीजें क्या-क्या होनी चाहिए। ज्यादातर लोगों की आय में कमी होने या काम-धंधे में मंदी की स्थिति कायम रहने की वजह से उनकी क्रयशक्ति लगातार सिकुड़ती गई है।

कई मामलों में सामान की खरीदारी में कटौती की आंच अब थाली तक भी पहुंच चुकी है। यह एक दुखद स्थिति है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ाने का दावा करने के क्रम में इस पक्ष की अनदेखी की जा रही है कि लोग जीने के लिए जो भोजन कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें कितना सोचना पड़ रहा है। हालत यह है कि निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के लिए भी खाने-पीने के सामान की कीमतें पहुंच से बाहर हो रही हैं। ऐसे में देश की गरीब आबादी के सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी हैं, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है।