अपने घर का सपना संजो कर उसे साकार करने की कोशिशों के दौरान बड़ी संख्या में लोगबाग बिल्डरों और भूमाफिया की चालबाजियों का शिकार होते रहे हैं। उम्र भर की गाढ़ी कमाई लुटाने के बावजूद उन्हें सर छुपाने के लिए छत नसीब नहीं हो पाती। कोई वैधानिक संरक्षण न होने के चलते न्याय की आस में दर-दर भटकने के बावजूद अंत में उन्हें मायूसी ही मयस्सर होती रही है। ऐसे लोगों के लिए संसद के दोनों सदनों में पिछले दिनों पास हुआ रियल एस्टेट बिल यानी भू-संपदा (विनियमन और विकास) विधेयक एक बड़ी उम्मीद लेकर आया है। यह विधेयक यूपीए सरकार के समय से लंबित था, जिसे विभिन्न पक्षों से विचार-विमर्श के बाद कुछ संशोधनों के साथ मौजूदा सरकार पारित कराने में कामयाब हुई है।

इसके तहत एक नियामक प्राधिकरण बनाया जाएगा, जिसमें किसी परियोजना की शुरुआत से पहले बिल्डर को पंजीकरण और उसकी जमीन खरीदने से लेकर अन्य सभी मंजूरियों का ब्योरा जमा कराना होगा। यह जानकारी उपभोक्ताओं के लिए सार्वजनिक होगी और वे अपनी पसंद की आवास परियोजना चुन सकेंगे। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने इस विधेयक को समय की जरूरत बताते हुए इससे बिल्डर और उपभोक्ता दोनों के हितों के संरक्षण का दावा किया है। यहां सवाल है कि जो भू-माफिया और बिल्डर तमाम कानूनों को धता बता कर उनमें अपने फायदे की गलियां निकालते हुए मुनाफे की गगनचुंबी इमारतें खड़ी करते रहे हैं, वे ऐसा ही सलूक नए कानून और प्रावधानों के साथ भी नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है!

रियल एस्टेट बिल के कानून की शक्ल लेने के बाद दावा किया जा रहा है कि इससे उपभोक्ता ‘किंग’ यानी बादशाह बन जाएगा। इसके अंतर्गत बिल्डर उपभोक्ताओं से वसूली गई रकम का सत्तर फीसद हिस्सा बैंक में अलग से रखेगा और उसका इस्तेमाल सिर्फ निर्माण कार्यों में करेगा। अब तक बिल्डर ग्राहकों से वसूली गई रकम को अपनी दूसरी परियोजनाओं या अन्य निर्माणेतर कायों में खर्च करके, लागत बढ़ने का बहाना बना कर ग्राहकों से अतिरिक्त रकम वसूलते रहे हैं, जिस पर लगाम लगने की उम्मीद है। इसके साथ ही बिल्डर किसी फ्लैट के लिए केवल उसके अंदर की जगह यानी ‘कारपेट एरिया’ की कीमत वसूलेगा न कि ‘सुपर एरिया’ यानी सीढ़ियों, गलियारे, बरामदे आदि की भी अलग से कीमत लगाएगा। परियोजना में देरी या निर्माण में गड़बड़ी के लिए उसे ब्याज और जुर्माना भी भरना पड़ेगा। परियोजना में किसी बदलाव के लिए उसे छियासठ फीसद ग्राहकों की इजाजत लेनी होगी।

हमारे यहां प्रापर्टी डीलर भी बिल्डरों से मिलीभगत करके उपभोक्ताओं को चूना लगाने के लिए कुख्यात रहे हैं। नए कानून के अनुसार उन्हें नियामक प्राधिकरण के पास पंजीकरण कराना होगा और वे प्राधिकरण की पंजीकृत परियोजनाओं में ही फ्लैट या अन्य संपत्तियां बेच पाएंगे। रियल एस्टेट दरअसल खेती के बाद देश में रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इसके दोषों को दूर करने की कोशिशें मुल्क में प्राय: नदारद ही रही हैं। नए कानून से इस क्षेत्र में पारदर्शिता आने की उम्मीद जगी है लिहाजा, इसके स्वागत में मीडिया से लेकर नागरिक समुदाय के बीच गदगद भाव पसरा हुआ है। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि समूचे रियल एस्टेट क्षेत्र में अकूत मुनाफे की अपार संभावनाएं उसे अक्सर अनैतिक रास्तों की तरफ ले जाती रही हैं। इन रास्तों की कारगर नाकेबंदी के बिना आखिर नया कानून वांछित लक्ष्यों तक कैसे पहुंच पाएगा?