अमेरिका में जबसे डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभाली है, उनका हर कदम विवादों में घिर जाता है। अभी हावर्ड विश्वविद्यालय का अनुदान रोकने पर विवाद थमा भी न था कि विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के एक हजार से अधिक अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों का वीजा रद्द किए जाने को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। इन विद्यार्थियों में हावर्ड, स्टैनफोर्ड , मैरीलैंड और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी जैसे सार्वजनिक संस्थानों के विद्यार्थी भी शामिल हैं। बहुत सारे विद्यार्थियों का कहना है कि उन्हें गलत तरीके से बाहर निकाला जा रहा है।

उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस कार्रवाई को अदालतों में चुनौती दी है। मगर विदेश मंत्रालय का कहना है कि कानून का उल्लंघन करने वाले विद्यार्थियों को सजा भुगतनी पड़ेगी, उन्हें देश से निकाला जा सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग के इस कदम से उन विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उन्हें बीच में अपनी पढ़ाई छूटने का भय सताने लगा है। इन विद्यार्थियों में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है, उसके बाद चीनी विद्यार्थियों की संख्या है। शैक्षणिक संस्थानों का कहना है कि कुछ विद्यार्थियों के खिलाफ यातायात उल्लंघन जैसे पुराने मामलों के आधार पर कार्रवाई की गई है, जबकि कुछ विद्यार्थियों ने फिलिस्तीन के समर्थन में हुए आंदोलन में हिस्सा लिया था।

पुराने मामलों को लेकर अमेरिकी प्रशासन कर रही कार्रवाई

सही है कि कोई भी देश बाहरी नागरिकों को इस बात की इजाजत नहीं दे सकता कि वे वहां के नियम-कायदों का उल्लंघन करें। अमेरिकी विदेश विभाग इस बात को लेकर सख्त है कि बाहरी विद्यार्थी शैक्षणिक संस्थानों के परिसरों तक सीमित रहें और अमेरिकी कानूनों का पालन करें। पहले ही ट्रंप प्रशासन की सख्ती और कटौती के कारण मार्च से अब तक विद्यार्थी वीजा में करीब तीस फीसद की कमी आई है। मगर अब वहां पढ़ने गए विद्यार्थियों के खिलाफ पुराने मामले तलाश कर उन्हें बाहर करने का अभियान चलेगा, तो स्वाभाविक रूप से उनमें भय और अनिश्चितता का वातावरण बनेगा।

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भारत आदि देशों से बहुत सारे विद्यार्थी इसलिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में दाखिला लेते हैं कि वहां पढ़ाई का स्तर बहुत अच्छा है और वहां से डिग्रियां लेकर उन्हें बेहतर नौकरियों के अवसर खुल जाते हैं। मगर ट्रंप प्रशासन की नई नीतियों के कारण बाहरी विद्यार्थियों का प्रवेश काफी कम हो जाएगा। जाहिर है, इससे वहां के संस्थानों पर भी असर पड़गा। पहले ही डोनाल्ड ट्रंप एच-1 वीजा पर सख्ती को लेकर विरोध झेल चुके हैं, अब विद्यार्थी वीजा पर भी वैसा ही वातावरण बनता दिखने लगा है।

लागातार विवादों में है ट्रंप का फैसला

ऐसा नहीं कि अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने गए दूसरे देशों के विद्यार्थी पहले किसी गफलत में या किन्हीं अन्य कारणों से कानूनों का उल्लंघन नहीं कर बैठते थे, पर तब उन्हें इस तरह निर्वासन की धमकी कभी नहीं झेलनी पड़ी। अब जिस तरह उन्हें देश छोड़ने को कहा जा रहा है, उससे ट्रंप प्रशासन की राजनीति ही जाहिर होती है। समान शुल्क संबंधी नीति के चलते ट्रंप अभी गंभीर विवादों में घिरे हुए हैं, जिसे लेकर खुद अमेरिकी लोग सड़कों पर उतर चुके हैं।

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दुनिया में शायद ही ऐसा कोई शासक हो, जिसे इस तरह अपने हर फैसले पर विरोध का सामना करना पड़ा हो। मगर ट्रंप अब भी शायद थोड़ा ठहर कर विचार करने और फिर आगे बढ़ने के सिद्धांत पर अमल करते नजर नहीं आ रहे। लोकतंत्र में जब भी एक व्यक्ति के मनमाने फैसले सब पर थोपे जाने लगते हैं, तो इसी तरह विवाद पैदा होते हैं।