अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर बाजी अपने नाम कर ली है। उन्होंने बहुमत के जरूरी आंकड़े से कहीं अधिक मत हासिल कर लिए हैं। सर्वेक्षणों में नतीजे डेमोक्रेटिक उम्मीदवार और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के पक्ष में जाते दिख रहे थे। मगर मतदान के आखिरी दिन कांटे की टक्कर नजर आने लगी। ट्रंप को उन सात राज्यों में भी बढ़त हासिल हुई, जो पलटी मारने वाले राज्य यानी ‘स्विंग स्टेट’ माने जाते हैं। हालांकि ये नतीजे हैरान करने वाले नहीं हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी उसी वक्त कमजोर पड़ने लगी थी, जब ट्रंप के आक्रामक चुनाव प्रचार के सामने राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी अस्वस्थता के चलते शिथिल नजर आने लगे थे। उसके बाद कमला हैरिस को उम्मीदवार बनाया गया।
मगर पार्टी के भीतर ही उथल-पुथल शुरू हो गई थी। इस तरह कमला हैरिस को समय कम मिल पाया। हालांकि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को कड़ी टक्कर दी और महिला मतदाताओं को लुभाने में कामयाब भी रहीं। मगर ट्रंप ने कमजोर अर्थव्यवस्था, महंगाई और अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर बाइडेन सरकार पर निशाना साधा, और उसका असर वहां के मतदाताओं पर पड़ा। हालांकि इन मसलों पर ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भी बहुत आक्रामक ढंग से काम किया था। उसी का प्रभाव था कि इस बार के चुनाव प्रचार में वहां के कई बड़े उद्योगपति भी उनके साथ मंच पर उतरे थे।
अमेरिका पर मंदी की मार
अमेरिका की अर्थव्यवस्था हालांकि अब भी बहुत खराब नहीं है, मगर पहले की तुलना में उसकी रफ्तार धीमी जरूर पड़ गई है। उस पर मंदी की मार है। महंगाई अब तक के पचास वर्षों में सबसे ऊपर पहुंच गई है। रोजगार के अवसर सिकुड़ रहे हैं। ऐसे में ट्रंप ने वादा किया कि वे एक करोड़ अवैध प्रवासियों को देश से निकाल बाहर करेंगे, उन पर करोड़ों डालर खर्च हो रहा है, तो वहां के युवाओं में नए अवसर की उम्मीद जगी। पिछले कार्यकाल में भी उन्हें युवाओं का भरपूर समर्थन हासिल था।
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इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रंप आक्रामक ढंग से प्रशासन चलाने में विश्वास करते हैं और आर्थिक नीति तथा विदेश नीति को लेकर उनका रुख स्पष्ट है। वे रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उसे रुकवा देंगे। इस तरह उन पर लोगों का भरोसा बना हुआ है। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जिस तरह कई बार राजनीतिक और लोकतांत्रिक मर्यादाएं तोड़ीं, उसकी भरपाई वे कभी नहीं कर पाएंगे।
चुनाव की तारीखों में बदलाव से निर्वाचन आयोग पर उठ रहे सवाल
डोनाल्ड ट्रंप के सामने जो आर्थिक चुनौतियां हैं, उनसे तो शायद वे पार पा लें, मगर विदेश नीति को लेकर उन्हें सदा संदेह की नजर से देखा जाता रहा है। चीन के प्रति उनका रुख बहुत सख्त है। इस वक्त दुनिया में जिस तरह के समीकरण हैं, उसमें वैश्विक दक्षिण की अहमियत बढ़ी है। भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में कोई तनाव नहीं है, मगर चीन और रूस के साथ अमेरिकी रिश्ते तल्ख होंगे तो भारत के साथ भी समीकरण गड़बड़ होने का खतरा हो सकता है।
ट्रंप का है विवादों से पुराना नाता
सबसे अहम बात कि अगर ट्रंप आव्रजन नीति में बदलाव करते हैं, तो वहां रह रहे भारतीय नागरिकों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। फिर, दुनिया में बढ़ रहे जलवायु संकट को लेकर ट्रंप संजीदा नहीं रहे हैं। पिछले कार्यकाल में ट्रंप के काम करने के तरीके पर लगातार सवाल उठते रहे। अगर इस बार भी उनका वही रुख रहेगा, तो उनका विवादों से बाहर निकलना मुश्किल होगा।