नफरती बयानों पर सख्त रुख दिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय कई मौकों पर इसे रोकने का निर्देश दे चुका है, मगर स्पष्ट है कि राजनेताओं ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। अब तो शायद सार्वजनिक मंचों पर भाषा की मर्यादा का भी खयाल रखने की जरूरत नहीं समझी जाती। इसी का नतीजा है कि सड़क की भाषा उठ कर संसद में पहुंच गई। दक्षिणी दिल्ली से भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी ने संसद में अपने ही साथी, बसपा सांसद के बारे में जैसे अपमानजनक और अशोभन शब्दों का इस्तेमाल किया, वैसा अब तक कभी नहीं किया गया। इसे लेकर स्वाभाविक ही विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हैं।
संसद के पटल और मुहल्ले के नुक्कड़ पर चल रही बहस में अंतर महसूस नहीं होता
बिधूड़ी के भाषण का वह अंश चौतरफा प्रसारित है और उसे देख-सुन कर साफ लगता है कि उन्हें संसद के पटल और मुहल्ले के नुक्कड़ पर चल रही बहस में कोई अंतर महसूस नहीं होता। संसद की अपनी मर्यादा है, उसके नियम-कायदे हैं। यहां तक कि संसद की भाषा तय है। वहां बहुत सारे शब्दों का इस्तेमाल वर्जित है। वहां किसी भी ऐसे शब्द का उपयोग नहीं किया जा सकता, जिसे असंसदीय करार दिया गया है। इसलिए वहां बोलने के लिए सांसद पहले से तैयारी करके आते हैं। ऐसा नहीं माना जा सकता कि बिधूड़ी इससे अनजान हैं।
विपक्ष के हंगामे के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने जारी किया कारण बताओ नोटिस
सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर इस संकल्प के साथ नए संसद भवन में प्रवेश किया कि उसमें लोकतंत्र की मर्यादाएं और प्रगाढ़ होंगी, मगर विचित्र है कि उसी सत्र में बिधूड़ी का ऐसा आपत्तिजनक आचरण सामने आ गया। लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि अगर अगली बार से ऐसा आचरण सामने आया, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। विपक्षी दलों ने हंगामा किया तो पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करके पंद्रह दिन के भीतर जवाब देने को कहा।
मगर विपक्षी दलों का तर्क है कि जब दूसरे दलों के नेताओं से सदन में मामूली चूक होती है तो भी उन्हें संसद से निलंबित कर दिया जाता है और बिधूड़ी ने एक साथी सांसद को सदन के पटल पर गाली दी, फिर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही। उन्हें चेतावनी देकर क्यों छोड़ दिया गया? विपक्ष उनकी सदस्यता समाप्त करने की मांग कर रहा है। इस तरह लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका भी प्रश्नांकित होने लगी है।
मगर सबसे अधिक किरकिरी भाजपा को झेलनी पड़ रही है। दरअसल, यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा के किसी नेता ने इस तरह किसी विशेष समुदाय के लोगों के लिए ऐसे आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। भरी सभाओं के मंचों से कुछ सांसद और कई नेता ऐसे नफरती भाषण देते देखे-सुने गए हैं। सरेआम समुदाय विशेष के प्रति लोगों को हिंसक व्यवहार करने, उनके कारोबार-व्यापार को बंद कराने को उकसाते देखे गए हैं। उन्हें लेकर सर्वोच्च न्यायालय पार्टी और सरकार को सख्त हिदायत दे चुका है। मगर ऐसे नफरती बोल रुक नहीं पा रहे हैं, इसलिए विपक्ष को यह आरोप दोहराने का एक बार फिर मौका मिल गया है कि भाजपा समुदाय विशेष के प्रति नफरत का वातावरण बना कर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास करती है।
अब जब नफरत की भाषा संसद के भीतर पहुंच गई है, तो स्वाभाविक ही पार्टी से ऐसे प्रतिनिधियों, नेताओं के प्रति सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग उठने लगी है। जब राजनेता खुद अपनी भाषा में संयम और मर्यादा का ध्यान नहीं रख पा रहे, तो उन्हें यह सलीका सिखाने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा!