दिल्ली में गुरुवार को मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता के शपथ लेने के बाद यह साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी एक स्पष्ट संदेश के साथ काम करना चाहती है। इस बात पर राजनीतिक गलियारों में जरूर सुगबुगाहट रही कि दिल्ली विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद पर चुने गए व्यक्ति की घोषणा करने में ग्यारह दिन क्यों लग गए। सतह पर इस पद के लिए खींचतान की चर्चा रही, मगर ऐसा लगता है कि रेखा गुप्ता की अब तक की राजनीतिक भूमिका को देखते हुए उनके नाम पर सहमति बनाने में पार्टी को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। जो हो, अब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही रेखा गुप्ता के सामने जितनी बड़ी चुनौती इस जिम्मेदारी के निर्वहन की है, उसी के समांतर जनता की नजर उन वादों को पूरा किए जाने पर भी रहेगी, जो चुनावों के दौरान भाजपा की ओर से किए गए थे।

गौरतलब है कि दिल्ली चुनावों के दौरान यमुना का पानी और उसकी सफाई एक बहुप्रचारित मुद्दा बनी थी। आरोप-प्रत्यारोप के बीच हकीकत यह है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने और उसकी सफाई के मसले पर दशकों से राजनीति होती रही है। अमूमन हर पार्टी ने सत्ता मिलने पर यमुना को स्वच्छ बनाने के बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन आज भी यह नदी बेहद दयनीय हालत में है और जिसका पानी नहाने लायक भी नहीं है।

प्रदूषण से निपटना महत्वपूर्ण चुनौती

यह देखने की जरूरत होगी कि दिल्ली की नई सरकार यमुना को एक स्वच्छ नदी के रूप में जीवन देने के लिए कितनी ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम कर पाती है। इसके अलावा, पूर्व सरकार की ओर से जनता के लिए चलाए गए कल्याणकारी कार्यक्रम, स्कूली शिक्षा, भ्रष्टाचार पर रोक, आबकारी नीति, दिल्ली में भयावह स्तर तक के प्रदूषण और बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने जैसी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, जिन पर विपक्ष के रूप में कभी भाजपा सवाल उठाती थी और अब आम आदमी पार्टी अपनी मजबूत भूमिका में हमेशा तैयार दिखेगी।

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मसलन, दिल्ली की महिलाओं को ढाई हजार रुपए देने की घोषणा के समांतर इस मसले पर संदेह भी जताए जाने लगे हैं। यों मुफ्त की योजनाओं पर अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं, मगर दिल्ली में बिजली-पानी आदि सेवाओं के अलावा बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा, आयुष्मान भारत की सुविधा जैसी कई योजनाओं के अलावा उपराज्यपाल के साथ तालमेल के मामले में नई सरकार की नीतियों पर सबकी नजर रहेगी।

मुख्यमंत्री के सामने एक बड़ी चुनौती

हालांकि यह चौथी बार है, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की कमान एक महिला को मिली है, लेकिन भाजपा ने इस बार खासी सीटें जीतने के बाद और इस पद के लिए कई दावेदारियों और जद्दोजहद की खबरों के बीच जिस तरह रेखा गुप्ता को यह जिम्मेदारी सौंपी है, यह अपने आप में एक अहम फैसला है। अब सत्ता संभालने के बाद भाजपा और नवनियुक्त मुख्यमंत्री के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी होगी कि आम आदमी पार्टी के शासन को उन्होंने जिन सवालों पर कठघरे में खड़ा किया था, जनता से जो वादे किए थे, उनको पूरा करने के प्रति वे कितनी मजबूत इच्छाशक्ति के साथ काम कर पाती हैं।

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कई बार चुनावी जीत हासिल करने के लिए प्रचार के दौरान लोकलुभावन घोषणाएं तो कर दी जाती हैं, मगर सत्ता मिलने के बाद उन्हें पूरा करने को लेकर कोई खास रुचि नहीं दिखाई जाती है। ऐसे में यह देखने की बात होगी कि दिल्ली में शासन की कार्यकारी शक्तियों की सीमा में नई मुख्यमंत्री यहां वैसी किन नीतियों पर चलती हैं, जो उन्हें पिछली सरकार के मुकाबले अलग ठहराए।