देश की राजधानी होने के नाते उम्मीद की जाती है कि दिल्ली में सरकार और स्थानीय प्रशासन बाकी जगहों के मुकाबले ज्यादा चौकस तरीके से कामकाज करते होंगे। नागरिक निकायों के अधिकारी-कर्मचारी अपने दायित्वों को लेकर अधिक सजग रहते होंगे। मगर पिछले कुछ समय से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हुए हादसों और उसमें लोगों के मारे जाने की घटनाओं से ऐसा लगता है कि संबंधित महकमों को इस बात की फिक्र कतई नहीं है कि उनकी लापरवाही का खामियाजा किन्हें उठाना पड़ता है।
निर्माणाधीन नाले को जोखिम के बावजूद खुला छोड़ दिया गया
इस लापरवाही को क्या कहें कि दिल्ली में गाजीपुर के एक निर्माणाधीन नाले को इस जोखिम के बावजूद खुला छोड़ दिया गया था कि बरसात ज्यादा होने और चारों तरफ पानी भर जाने के बाद यह पता चलना संभव नहीं रहा कि नाला कहां है और रास्ता कहां है। उसमें कोई भी गिर सकता था। हुआ भी यही कि किसी काम से बाहर निकली एक मां अपने ढाई वर्ष के बच्चे के साथ खुले नाले में गिर गई और उसमें डूब कर दोनों की मौत हो गई।
ऐसे हादसे की आशंका पहले से थी, मगर दिल्ली विकास प्राधिकरण की ओर से उस जगह पर चेतावनी के संकेतक लगाना जरूरी नहीं समझा गया। करीब पंद्रह फुट गहरे उस गड्ढे के जोखिम का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसमें गिरने के बाद किसी के लिए भी जान बचाना मुश्किल था। सवाल है कि इस तरह के खतरे के बावजूद वहां कोई भी सुरक्षात्मक उपाय करना जरूरी क्यों नहीं समझा गया।
लगता है कि दिल्ली सहित समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हर जगह किसी न किसी रूप में जोखिम मौजूद है और उससे बचना लोगों के ऊपर ही छोड़ दिया गया है। बुधवार की शाम को हुई भारी बारिश के बाद दिल्ली और गुरुग्राम में छह लोगों की मौत करंट लगने से हो गई। बिजली के खंभों पर तार इस कदर बिखरे हुए थे कि मामूली गफलत की वजह से कोई भी उनके संपर्क में आ सकता था। कहीं घरों में पानी घुस जा रहा है और वहां भी जान जाने का खतरा बना रहता है। इन सबके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी?