देश की राजधानी में डेंगू के साथ मलेरिया और चिकनगुनिया के मामले जिस तेजी से बढ़े हैं, उससे यह साबित हो गया कि स्थानीय निकाय के साथ राज्य सरकार भी इनकी रोकथाम के लिए गंभीर नहीं थी। इसी के साथ उनके तमाम दावों की पोल भी खुल गई है। यह हाल तब है जबकि दिल्ली सरकार का शिक्षा के बाद स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा बजट है। यह दुखद है कि डेंगू के मामले प्रति वर्ष आते हैं, लेकिन इसे रोकने की पुख्ता तैयारी नहीं होती।
इस साल सबसे अधिक डेंगू के मामले
इस साल नवंबर तक करीब पौने छह हजार लोग डेंगू की चपेट में आए। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक यह संख्या पांच वर्षों की तुलना में सर्वाधिक है। चिकनगुनिया से भी दिल्लीवासी त्रस्त रहे। मलेरिया सहित इस तरह के रोग आमतौर पर अगस्त-सितंबर में बढ़ते हैं और मौसम में ठंडक उतरने के साथ अक्तूबर-नवंबर तक समाप्त हो जाते हैं।
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मगर इस बार मौसम निकल जाने पर भी लोग मच्छरजनित बीमारियों की चपेट में आते रहे। हालांकि दिल्ली नगर निगम ने लार्वारोधी उपायों, धुएं के छिड़काव और दवा आदि पर खर्च करने की बात कही है, फिर भी मामले नहीं थमे। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं उससे बड़ी चूक हुई है।
कहां खर्च हुए सौ करोड़ रुपये
अमूमन सर्दियों की शुरूआत के साथ मच्छर कम होने लगते हैं, लेकिन इस बार आश्चर्यजनक रूप से बीमारियां बढ़ीं। अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज पहुंचे। जबकि मच्छरों से निपटने और इलाज आदि पर सौ करोड़ रुपए खर्च करने की जानकारी दिल्ली नगर निगम ने दी है। आखिर इतनी बड़ी राशि किस तरह और कहां खर्च हुई, यह जांच का विषय है।
बीमारियों से निपटने के उपायों पर स्थानीय निकाय और राज्य सरकार में समन्वय होना चाहिए। खासकर जब एक ही दल दोनों जगह सत्तारूढ़ हो। कोई दो राय नहीं कि राज्य सरकार और नगर निगम अगर योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाते, तो डेंगू और चिकनगुनिया के मामले इतने नहीं बढ़ते।
सरकार मोहल्ला क्लीनिकों को सक्रिय कर सकती थी। मच्छर जनित बीमारियों को रोकने के लिए टीमें तैनात की गई थीं, लगातार जनजागरूकता अभियान चलाए जाते रहे, इसके बावजूद इन बीमारियों का बढ़ते जाना चिंता की बात है।