अनियमितता से संबंधित मामलों में कार्रवाई आमतौर पर उन्हीं लोगों पर केंद्रित रहती है, जो आरोपी होते हैं और माना जाता है कि अवैध गतिविधियों या लेनदेन में उनकी मुख्य भूमिका है। इस संदर्भ में यह एक विडंबना ही रही है कि किसी भ्रष्ट गतिविधि का लाभ तो एक पूरे समूह को मिलता है, लेकिन जब उसका खुलासा होता है तो आरोपों के कठघरे में एक-दो लोग ही आते हैं।
अब दिल्ली में शराब घोटाले की सुनवाई के दौरान सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ ने जो कहा है, अगर वह कानूनी तौर पर जमीन पर उतरा तो यह इस मसले पर एक बड़े बदलाव का उदाहरण बनेगा। दरअसल, दिल्ली आबकारी नीति मामले में पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान सीबीआइ और ईडी ने अदालत को बताया कि इस मुकदमे में आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाने पर विचार किया जा रहा है। आरोपों की प्रकृति के सवाल पर अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि आरोप अलग हो सकते हैं, लेकिन अपराध एक ही होगा।
जाहिर है, अगर भ्रष्टाचार के आरोपों में इस स्तर पर कानूनी कार्यवाही चलती है, तो इस संबंध में एक नया आयाम खुलेगा। यह सवाल उठेगा कि अगर किसी राजनीतिक पार्टी में जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति किसी अनियमितता में मुख्य आरोपी है, लेकिन उसकी गतिविधियों का लाभ पूरी पार्टी को मिले, तो जिम्मेदारी का दायरा क्या होना चाहिए।
इसी कोण से अदालत में उठी बात के बाद ईडी और सीबीआइ की ओर से ताजा रुख जाहिर किया गया। गौरतलब है कि पांच अक्तूबर को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय से पूछा था कि अगर शराब घोटाले से सीधे आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचा, तो फिर उसे आरोपी क्यों नहीं बनाया गया।
अदालत के इस सवाल के बाद अब ईडी और सीबीआइ ने एक तरह से इसी सवाल को कार्रवाई के दायरे में शामिल करने का संकेत दिया है। अब तक आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेताओं- मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को आबकारी घोटाले से जुड़े मामलों में ईडी और सीबीआइ ने गिरफ्तार किया है। इस क्रम में अब मामले की आंच समूची पार्टी तक पहुंचती दिख रही है।
हालांकि अगर ईडी और सीबीआइ आम आदमी पार्टी को भी कठघरे में खड़ा करने के लिए कानूनी पहल करती है, तो इससे जुड़े कानून की कसौटी पर यह परखा जा सकता है कि क्या धनशोधन रोकथाम अधिनियम के दायरे में किसी राजनीतिक पार्टी को भी लाया जा सकता है। दरअसल, धनशोधन रोकथाम अधिनियम की धारा-70 को अब तक कंपनियों के जरिए किए जाने वाले अपराधों की स्थिति में लागू होता रहा है।
मगर यही कानून अगर राजनीतिक दल को आरोपी बनाने में उपयोग होता है, तो संभव है कि इसके लिए अलग से कोई और कानूनी रास्ता अख्तियार करना पड़े। कानूनी पेचीदगियों की वजह से यह मसला बहस का केंद्र बनेगा। यह छिपी बात नहीं है कि भ्रष्टाचार या अनियमितता की लाभार्थी कई बार समूची पार्टी होती है, लेकिन कार्रवाई के दायरे में एक-दो नेता आते हैं।
इस तरह किसी व्यापक दायरे का भ्रष्टाचार व्यक्तिगत मामला बन कर रह जाता है। सवाल है कि ऐसे मामलों में पार्टी की जिम्मेदारी क्या होगी? अगर कानूनी कसौटियों पर किसी राजनीतिक दल को आरोपी बनाने का आधार मजबूत हुआ तो आम आदमी पार्टी को शायद गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़े!