शहरों-महानगरों में महंगे रेस्तरां में भोजन के लिए जाने वाले ज्यादातर लोग शायद इस बात पर बहुत गौर नहीं करते कि वे कितने पैसे चुका रहे हैं। यही वजह है कि रेस्तरां में खाने-पीने के कुल खर्च के अलावा भी अलग से सेवा शुल्क जोड़ दिया जाता है। या तो लोग इसके औचित्य से अनजान रहते हैं या फिर उसे चुकाने में उन्हें कोई उज्र नहीं होता। जबकि यह सीधे-सीधे उपभोक्ता अधिकारों का हनन है और किसी वस्तु की निर्धारित से ज्यादा कीमत वसूलने का अवांछित प्रयास है।
इसे कानूनन भी गलत माना जाना चाहिए। हालांकि इस तरह अनधिकृत रूप से ज्यादा कीमत वसूलने के मुद्दे पर पहले भी केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण और दिल्ली उच्च न्यायालय अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं कि रेस्तरां अपने बिल में अलग से सेवा शुल्क नहीं जोड़ सकते। अदालत ने उपभोक्ताओं के अधिकारों को सबसे अहम बताया था। लेकिन यह समझना मुश्किल है कि ग्राहकों से नाहक पैसे वसूलने के मसले पर रेस्तरां मालिक क्यों अपनी मनमानी चलाना चाहते हैं।
ऐसी वसूली पर तत्काल लगनी चाहिए रोक
अब एक बार फिर दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेस्तरां एसोसिएशन से यह पूछा है कि जब आप खाने-पीने की चीजों पर पहले से ही अधिकतम खुदरा मूल्य से ज्यादा शुल्क वसूल रहे हैं, तब फिर अलग से सेवा शुल्क क्यों ले रहे हैं। यह जगजाहिर हकीकत है कि किसी भी महंगे रेस्तरां में अगर कोई व्यक्ति भोजन करने जाता है तो उसे वहां मिलने वाले खाद्य पदार्थों के लिए वाजिब से काफी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। अतिरेक तब हो जाता है, जब रेस्तरां की ओर से न केवल सामान्य कीमतों से अधिक मूल्य पर वस्तुएं दी जाती हैं, बल्कि खाना परोसने के नाम पर कुल बिल में अलग से सेवा शुल्क भी जोड़ दिया जाता है।
सवाल है कि क्या ग्राहकों के सामने यह स्पष्ट किया जाता है कि रेस्तरां में उनकी सीट पर खाने-पीने का सामान पहुंचाने के लिए अलग से पैसे जोड़े जाएंगे। यही नहीं, आमतौर पर बिल चुकाने के बाद रेस्तरां या होटल के बैरे को बख्शीश देना भी एक रिवायत-सी बन चुकी है। इस तरह, ऐसे होटलों या रेस्तरां में कुल खर्च के ऊपर भी कई बार खासी रकम चुकानी पड़ती है। ऐसी वसूली पर तत्काल रोक लगनी चाहिए और दिल्ली उच्च ने रेस्तरां एसोसिएशन के रुख पर वाजिब सवाल उठाया है।
