माना जाता है कि राजधानी होने के नाते दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस की मौजूदगी का प्रभाव देश के अन्य हिस्सों से बेहतर स्थिति में होगा। मगर दिल्ली के कालकाजी इलाके में महज प्रसाद देने के मुद्दे पर कुछ लोगों ने जिस तरह वहां मंदिर के एक सेवादार की बर्बरता से पीट-पीट कर जान ले ली, उससे एक बार फिर यही पता चलता है कि कुछ लोगों में न तो संवेदनशीलता बची है और न शायद उनके भीतर इस बात का डर है कि वे जिस अपराध को अंजाम दे रहे हैं, उसके बदले उनकी जिंदगी जेल की सींखचों के भीतर कट सकती है।
गौरतलब है कि शुक्रवार की रात मंदिर में आए कुछ लोगों ने प्रसाद देने जैसी बहुत साधारण-सी बात पर सेवादार की लाठी-डंडों से इतनी पिटाई की कि उसकी जान चली गई। स्थानीय लोगों ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। एकबारगी इस बात पर हैरानी होती है कि इतनी मामूली बात पर किसी की हत्या तक कर डालने की हिम्मत कुछ लोगों के भीतर कैसे चली आती है। निश्चित रूप से यह कानून-व्यवस्था की नाकामी का नतीजा है, जिसमें आपराधिक मानस वाले लोगों में पुलिस का कोई खौफ नहीं दिखता। यह स्थिति तब है जब दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था बहुस्तरीय चौकसी के तहत संचालित होती है।
समाज में पनप और पल-बढ़ रही मानसिक विकृति
एक जटिल और महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि लोगों के भीतर एक विचित्र किस्म का उतावलापन और विवेकहीनता भर रही है, जिसमें वे किसी बेहद मामूली बात पर आपा खो देते हैं और यहां तक कि किसी की हत्या तक कर देने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। समाज में पनप और पल-बढ़ रही इस मानसिक विकृति के उदाहरण अक्सर देखने को मिल रहे हैं, जिनमें बहुत छोटी और आमतौर पर अनदेखी कर दी जाने वाली बातों पर भी नाहक ही गुस्से से भर कर दो लोग आपस में उलझ जाते हैं, उनके साथ के लोग भी उसमें शामिल हो जाते हैं और फिर उसमें जो ताकतवर होता है वह दूसरे पक्ष के किसी व्यक्ति की हत्या तक कर देने से नहीं हिचकता।
यहां न तो विवेक की उपस्थिति दिखती है और न ही पुलिस या कानून का डर। सवाल है कि इस तरह की असहिष्णु मन:स्थिति में पहुंच चुके लोग समाज और देश के सामने किस तरह की चुनौती खड़ी कर रहे हैं और इस स्थिति में सुधार लाना किसकी जिम्मेदारी है।