दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर ‘जन सुनवाई’ कार्यक्रम के दौरान हमला गंभीर और चिंताजनक घटना है। इससे न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा, बल्कि राष्ट्रीय राजधानी में समूची सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं। अगर मुख्यमंत्री के कड़े सुरक्षा घेरे की परवाह किए बगैर कोई व्यक्ति इस तरह की हरकत कर सकता है, तो आम आदमी खुद को कैसे सुरक्षित महसूस करेगा।

हालांकि, कहा जा रहा है कि मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने आरोपी को तत्काल हिरासत में ले लिया। उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है। मगर, सवाल यह है कि वह मुख्यमंत्री के इतने करीब कैसे पहुंच गया? सुरक्षाकर्मी उसके नापाक इरादों को पहले क्यों नहीं भांप पाए? यह कोई साजिश थी या फिर कुछ और, इसका पता तो जांच-पड़ताल के बाद ही चल पाएगा, लेकिन इस घटना को सुरक्षा में चूक की नजर से देखा जा रहा है।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आरोपी सीएम के पास पहुंच गया

मुख्यमंत्री पर हमला बुधवार सुबह उस समय हुआ, जब वे सिविल लाइंस स्थित अपने कार्यालय में लोगों की शिकायतें सुन रही थीं। पुलिस के मुताबिक, आरोपी ने मुख्यमंत्री को पहले कुछ कागजात दिए और फिर अचानक उन पर हमला कर दिया। इस हमले में उन्हें हाथ, कंधे और सिर में चोटें आई हैं। गौर करने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है। सुरक्षा के इतने मजबूत घेरे के बावजूद आरोपी मुख्यमंत्री के इतने करीब पहुंच गया कि हमला कर सके।

आरोपी गुजरात के राजकोट का निवासी है और पुलिस का दावा है कि उस पर पहले से पांच आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें चाकू से हमले के दो और आबकारी अधिनियम के तहत तीन मामले शामिल हैं। यही नहीं, प्रारंभिक जांच में पता चला है कि आरोपी दो दिन पहले दिल्ली आया था और उत्तरी दिल्ली के सिविल लाइंस में रुका था। उसने हमले से पहले मुख्यमंत्री कार्यालय परिसर की रेकी भी थी। सीसीटीवी फुटेज में इसके प्रमाण मिले हैं। यानी पुलिस का खुफिया तंत्र भी आरोपी की इन गतिविधियों का समय रहते पता लगाने में विफल रहा। इसे सुरक्षा में लापरवाही नहीं तो और क्या कहा जाएगा।

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इस घटना को दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में ले जाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से भी जोड़ा जा रहा है। आरोपी की मां का दावा है कि उनका बेटा पशु प्रेमी है और वह कुत्तों से बहुत प्यार करता है। कुत्तों को आश्रय स्थलों में भेजने की प्रक्रिया से वह आहत था और अपना विरोध जताने के लिए दिल्ली आया था।

अब सवाल यह है कि कानूनी दायरे में रह कर विरोध जताने के कई तरीके हैं, फिर उसने मुख्यमंत्री पर हमले की वारदात को अंजाम क्यों दिया? क्या इसके पीछे कोई सोची-समझी साजिश थी, पुलिस इस पहलू से भी छानबीन कर रही है। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि जिस तरह हमला किया गया, वह जानलेवा भी हो सकता था। इससे इस घटना की गंभीरता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

ऐसे में यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि आखिर राजधानी में सुरक्षा इंतजामों में इतनी लापरवाही क्यों हो रही है। अपराधियों में कानून का खौफ क्यों नहीं रहा। उनके हौसले क्यों बुलंद हो रहे हैं? जब तक इसकी जड़ में नहीं जाएंगे, तब तक कानून व्यवस्था में सुधार की उम्मीद धुंधली ही रहेगी।