कोलकाता के बड़ा बाजार इलाके में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर के गिरने से चौबीस लोगों की मौत हो गई। यह कोई मामूली हादसा नहीं है। सवाल है क्या इसकी जवाबदेही तय होगी और दोषी लोगों को सजा मिलेगी? क्या आगे के लिए कुछ सबक लिये जाएंगे? यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि इस हादसे को हम कैसे देखते हैं। फ्लाईओवर के निर्माण में लगी कंपनी आईआरवीसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस हादसे को दैवीय घटना करार दिया है। क्या निर्माणाधीन फ्लाईओवर का अचानक गिर जाना भूकम्प आने जैसी घटना है जिस पर किसी का बस न हो? कंपनी सौंपे गए काम को लेकर तो संजीदा थी ही नहीं, उसके अधिकारी की यह प्रतिक्रिया बताती है कि वह अपने कर्मचारियों और मजदूरों के प्रति भी तनिक संवेदनशील नहीं रही है।
लेकिन इस हादसे ने सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर होने वाली ढिलाई को भी रेखांकित किया है। बड़ा बाजार इलाके में 2.2 किलोमीटर लंबे विवेकानंद फ्लाईओवर का निर्माण सात साल से चल रहा था। जैसा कि तमाम फ्लाईओवरों के पीछे मकसद होता है, विवेकानंद फ्लाईओवर की योजना यह सोच कर बनाई गई थी कि इससे उस इलाके में ट्रैफिक जाम से राहत मिलेगी। इसे अठारह माह में बन कर तैयार होना था, पर बार-बार इसकी समय-सीमा बढ़ानी पड़ी, जिससे लागत भी बढ़ती गई। बीच में पैसा न मिलने के कारण कंपनी ने दो साल तक काम बंद रखा। अंतिम समय-सीमा मई 2015 तय की गई। वह तारीख भी बीत गई। फिर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भरोसा दिलाया कि इस साल मार्च तक फ्लाईओवर लोगों के काम आने लगेगा और वे खुद उद्घाटन के दिन उसे पार करेंगी। लेकिन उनके आश्वासन के मुताबिक फ्लाईओवर तो पूरा नहीं हुआ, मार्च के अंतिम दिन उसके गिरने से बड़ा हादसा जरूर हो गया। जहां मुख्यमंत्री ने उद््घाटन के लिए जाने को सोचा रहा होगा, वहां उन्हें मृतकों के परिजनों और घायलों की सुध लेने के लिए अपना चुनावी दौरा बीच में छोड़ कर जाना पड़ा।
दुर्घटना के पीड़ितों के लिए मुआवजे की घोषणा करने के साथ ही मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि हादसे के लिए जिम्मेवार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। उनके निर्देश पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित कर दी गई है जिसमें लोक निर्माण विभाग के सचिव और कई आला पुलिस अफसर भी शामिल हैं। एक दूसरी समिति भी बनाई गई है जो दुर्घटना के कारणों का पता लगाएगी; इसमें आईआईटी-खड़गपुर के निर्माण संबंधी विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। ऐसे कदम अमूमन इस तरह के हर हादसे के बाद उठाए जाते हैं। पर बाद में शायद ही कोई ऐसी पहल होती है जिससे यह भरोसा पैदा हो कि आगे ऐसा हादसा नहीं होगा। जब-तब खबर आती रहती है कि अमुक शहर में बन रही कोई इमारत गिरने से कुछ लोग मारे गए, कहीं कोई बन रहा पुल गिर गया। घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल से लेकर तकनीकी खामी तक, इसकी कई वजहें होती हैं। ठेकेदारों और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही को भी इसमें जोड़ सकते हैं। क्या इस तरह के हादसों को नियति मान लिया जाए, या इन्हें होने से रोका जा सकता है? तमाम गड़बड़ियों की शृंखला में जो सबसे बड़ी खामी दिखती है वह है पर्याप्त निगरानी का न होना। अगर हर स्तर पर यह निगरानी रखी गई होती कि निर्माण-कार्य में तय मानकों का पालन हो रहा है या नहीं, तो शायद यह हादसा घटित न होता।