उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में पिछले दस दिनों से फंसे इकतालीस मजदूरों से संपर्क होने के बाद उनके परिजनों तथा राहत और बचाव दल ने राहत की सांस ली है। सभी श्रमिक सुरक्षित हैं और उन्हें भोजन-पानी पहुंचाने का इंतजाम कर दिया गया है। जल्दी ही उन्हें बाहर निकाल लाने का भरोसा बना है।

जरूरी मशीनें मंगा ली गई हैं और सुरंग के अगल-बगल से खुदाई चल रही है। दरअसल, सीधी खुदाई करके मलबा हटाना जोखिमभरा काम था, इसलिए इस काम में काफी वक्त लग गया। दिवाली वाले दिन सुरंग में काम चल रहा था कि जमीन धंस गई और सुरंग में मलबा भर गया। तब दावा किया गया था कि एक-दो दिन में ही मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा, मगर दस दिनों तक कोई उपाय काम नहीं आया।

जैसे-तैसे मजदूरों तक दवाएं और कुछ मेवे वगैरह पहुंचाए जा पा रहे थे। अब वहां तक एक पाइप डाल कर कैमरे के माध्यम से उनसे संपर्क हो पाया है और बचाव दल को वहां की सही स्थिति समझने में भी मदद मिल पा रही है। हालांकि इतने दिनों तक चली मशक्कत के बीच कई ऐसे सवाल भी उभरे हैं, जिनका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।

यों सुरंगों और खदानों में काम करना हमेशा जोखिमभरा होता है। पहले भी कई कोयला खदानों के धंस जाने या उनमें पानी भर जाने से मजदूरों के हताहत होने की घटनाएं दर्ज हुई हैं। मगर जबसे इसके लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है और सुरक्षा उपाय अधिक पुख्ता हो गए हैं, तबसे ऐसी घटनाएं कम ही सुनने को मिलती हैं।

उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग बना रही कंपनी काफी अनुभवी है और इस तरह की कई परियोजनाओं पर पहले काम कर चुकी है। जाहिर है, उसके पास तकनीकी दक्षता है। मगर यह समझना अब भी मुश्किल है कि कैसे उसे पहाड़ धंसने की आशंका नहीं थी और वह सामान्य सुरंग बनाने के तरीके ही इस्तेमाल करती रही। जहां भी सुरंग की खुदाई होती है, वहां जमीन की प्रकृति का अध्ययन पहले किया जाता है।

उत्तराखंड के पहाड़ों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वे इस कदर भंगुर हैं कि सामान्य से अधिक बारिश में भी धंसने लगते हैं। वहां जोशीमठ आदि में पहाड़ों के दरकने से किस तरह लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा, वह भी किसी से छिपा नहीं है। फिर भी कंपनी ने जरूरी एहतियाती उपाय कैसे नहीं जुटाए।

सुरंग धंसने के बाद अनेक तकनीकी पहलुओं पर भी चर्चाएं हो चुकी हैं, जिनमें कंपनी की तरफ से जरूरी अध्ययन और सुरक्षा इंतजाम न किए जा सकने की लापरवाहियों पर अंगुलियां उठी हैं। बाहरी दबाव को रोकने के लिए सीमेंट की जैसी मोटी परत बिछाई जानी चाहिए और श्रमिकों की सुरक्षा के लिए पहले ही जो पाइप डाली जानी चाहिए, उसके न होने को लेकर भी कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं।

उम्मीद की जाती है कि इस परियोजना से जुड़े लोग इस घटना से सबक लेंगे और आगे किसी भी तरह की ऐसी घटना को रोकने का प्रयास करेंगे। अच्छी बात है कि मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए तकनीकी उपाय जुटा लिए गए हैं और विशेषज्ञ दूसरे रास्तों से उन तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। इस समय तकनीकी जिस उन्नत अवस्था में है, उससे भरोसा बढ़ा है कि इस समस्या से जल्दी ही पार पा लिया जाएगा।