जिस देश के साथ भारत का हमेशा से बहुत नजदीकी और प्रगाढ़ रिश्ता रहा हो, वहां के संसदीय चुनावों में हमारी दिलचस्पी अन्य देशों की तुलना में स्वाभाविक ही कहीं अधिक हो सकती है। नेपाल के संसदीय चुनावों के नतीजे अंतिम रूप से आने में अभी कुछ वक्त लगेगा, पर घोषित नतीजों और रुझान से यह साफ है कि अगली सरकार नेपाल की दो प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन की बनेगी। तीन प्रमुख पार्टियां मैदान में थीं। नेपाल की सबसे पुरानी पार्टी नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (यूएमएल) तथा कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर)। इस मुकाबले में नेपाली कांग्रेस बहुत पीछे छूट गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने गठजोड़ करके चुनाव लड़ा था; उनके वोट बंटे नहीं, और उनके सम्मिलित वोटों के मुकाबले नेपाली कांग्रेस कमजोर पड़ गई। गठबंधन की सफलता की दूसरी प्रमुख वजह यह रही कि इस बार नेपाल के मतदाताओं ने राजनीतिक स्थिरता को तरजीह दी है। गठबंधन ने स्थिर सरकार देने का वायदा किया था। और प्रतिनिधि सभा की जो संभावित तस्वीर उभरती दिख रही है उसमें गठबंधन का आंकड़ा बहुमत की शर्त वाली संख्या से अधिक ही होगा।
नेपाल ने पिछले ग्यारह वर्षों में दस प्रधानमंत्री देखे हैं। लिहाजा, सहज ही समझा जा सकता है कि मतदाताओं ने राजनीतिक स्थिरता के वायदे को निर्णायक महत्त्व क्यों दिया होगा। वहां के लोगों को लग रहा था कि जल्दी-जल्दी सरकार या सरकार का नेतृत्व बदलने से विकास-कार्य प्रभावित हो रहे हैं। फिर, 2015 में आए भूकम्प से हुई भारी तबाही के मद््देनजर पुनर्निर्माण का का काम भी ठीक से नहीं हो पा रहा है। नेपाल की चुनाव प्रणाली भारत से थोड़ी भिन्न है। वहां दो सौ पचहत्तर सांसदों में से एक सौ पैंसठ सांसद सीधे मतदाताओं द्वारा (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट विधि से) चुने जाते हैं, और बाकी एक सौ दस सांसद आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से। सभी दलों के संसदीय प्रतिनिधियों में एक तिहाई संख्या महिलाओं का होना जरूरी है। अगर प्रत्यक्ष चुनाव में कोई पार्टी इस शर्त को पूरी नहीं कर पाती है, तो उसे आनुपातिक प्रणाली के जरिए होने वाले चुनाव में इसकी भरपाई करनी होगी। चौथी प्रतिनिधि सभा के लिए मतदान दो चरणों में हुए। छब्बीस नवंबर और सात दिसंबर को मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए और अनुमान है कि सड़सठ फीसद वोट पड़े। लेकिन 2015 में अंगीकार किए गए संविधान के तहत सात प्रांतीय विधानसभाओं के लिए पहली बारचुनाव हुए।
नेपाल के नए संविधान में देश के संघीय ढांचे को काफी अहमियत दी गई है। इस तरह इन चुनावों से नेपाल के संघीय स्वरूप के भी ठोस आकार लेने की संभावना है। दरअसल, केंद्र में स्थिर सरकार का रास्ता साफ होने के अलावा देश की संघीय तस्वीर इन चुनावों की दूसरी सबसे बड़ी खासियत है। नेपाल के राजनीतिक दलों में नेपाली कांग्रेस का भारत के प्रति ज्यादा झुकाव रहा है। पर उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत से नेपाल के रिश्ते यथावत मधुर रहेंगे। नेपाल से भारत की भौगोलिक निकटता के अलावा सांस्कृतिक रिश्ता भी बहुत गहरा है। फिर, नेपाल बहुत सारी चीजों की आपूर्ति के लिए भारत पर निर्भर रहा है। कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (यूएमएल) और कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) ने भरोसा दिलाया है कि वे भारत से सौहार्दपूर्ण संबंध रखेंगे।