देश में राजनीतिक गठबंधनों का बनना और बिखरना कोई नई बात नहीं है। विडंबना यह है कि महज चुनाव की चुनौतियों का सामना करने के मकसद से इस तरह के साथ कई बार तात्कालिक नफा-नुकसान के गठजोड़ साबित होते हैं। कुछ समय पहले जब कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों को साथ मिला कर ‘इंडिया’ नाम से एक समूह का गठन किया गया था, तब लगा था कि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को आगामी आम चुनावों में खासी चुनौती मिल सकती है।

मगर उससे पहले ही नए बने विपक्षी गठबंधन में कुछ दलों की ओर से जिस तरह की जद्दोजहद, चुनावी सीटों की संख्या को लेकर खींचतान देखने में आ रही है, उससे यही लगता है कि इस समूह में सिद्धांत के आधार पर साथ आने की सहमति शायद नहीं बन पाई है, बल्कि इसमें शामिल कुछ दलों पर फिलहाल अपनी सीटें बढ़ा कर राजनीतिक शक्ति बढ़ाने की मंशा हावी है।

गठबंधन में शामिल कुछ दलों के बीच स्पष्ट मतभेद और दूरी के संकेत तब सामने आए, जब बुधवार को तृणमूल कांग्रेस की शीर्ष नेता ममता बनर्जी ने बंगाल में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी तो दूसरी ओर पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी यही राग दोहराया।

रअसल, राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के बंगाल में आयोजित किए जाने के बारे में शिष्टाचार के नाते भी सूचित नहीं करने से लेकर कांग्रेस की ओर से अपने कई प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने के दावे के साथ ममता बनर्जी ने एक तरह से अपनी नाराजगी छिपाई नहीं। उन्होंने सख्त भाषा में यहां तक कह डाला कि मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि देश में क्या किया जाएगा… बंगाल में तृणमूल कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है और वह अकेले ही भाजपा को हरा देगी।

जाहिर है, यह नए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए एक तरह से झटका है, क्योंकि देश की राजनीति में ममता बनर्जी का अपना एक प्रभाव रहा है और अब वे विपक्ष की राजनीति के लिए एक महत्त्वपूर्ण कड़ी मानी जाती हैं। शायद यही वजह है कि उनके ताजा रुख और उससे जुड़ी आशंकाओं के सामने आते ही कांग्रेस सहित विपक्ष के कई अहम नेताओं की ओर से ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस को गठबंधन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए इस मसले का हल निकाल लेने की बात कही गई है। मगर इसके अलावा भी खबर आई कि गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी के नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री ने राज्य की सभी तेरह लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की बात कही है।

सवाल है कि जब आम चुनावों के दिन करीब रहे हों और उसी मुताबिक विपक्ष को अपनी तैयारी करने की जरूरत है, वैसे में इस तरह की स्थितियां क्यों पैदा हो रही हैं, जिसमें गठबंधन के भविष्य को लेकर आशंकाएं पैदा हो रही हैं! देश के राजनीतिक परिदृश्य में जैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें एक सशक्त विपक्ष लोकतंत्र को मजबूत करने में मददगार साबित हो सकता है।

फिलहाल भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अपने सामने कोई चुनौती नहीं मान रहा है। अगर विपक्षी दलों ने मिल कर उसका सामना करने के लिए कोई समूह बनाया है, तो उसकी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए? पिछले कुछ समय से ‘इंडिया’ समूह में जैसी खींचतान देखी जा रही है, उससे यही लगता है कि इसमें शामिल सभी पार्टियों को सबसे पहले सैद्धांतिक कसौटी पर साथ होने को लेकर प्रतिबद्धता कायम रखनी होगी। मगर राजनीतिक दलों के गठबंधनों के भीतर पद और कद को लेकर जिस तरह की महत्त्वाकांक्षाओं का टकराव देखा जाता रहा है, वह अभी से ‘इंडिया’ समूह में साफ दिखने लगा है।