भारतीय जमीन पर दावेदारी जताने की युक्तियां चीन सदा से खोजता रहता है। अरुणाचल को वह अपना हिस्सा बताता रहा है। उसके सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा लांघने का प्रयास करते हैं। इस वजह से कई मौकों पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ जाता है। करीब पांच वर्ष पहले उसके सैनिक गलवान घाटी में घुस आए थे, जिन्हें रोकने में खूनी संघर्ष हुआ। तबसे दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस बीच उसने अरुणाचल की कुछ जगहों के नाम बदल कर यह जताने का प्रयास किया कि वे उसका हिस्सा हैं।

2017 में उसने अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों के नए नाम की सूची जारी की थी।उसके बाद 2021 में पंद्रह स्थानों वाली दूसरी सूची और 2023 में ग्यारह अतिरिक्त स्थानों के नाम वाली एक और सूची जारी की थी। पिछले महीने तीस स्थानों के नाम बदल कर उसने एक और सूची जारी कर दी। अब कुछ और जगहों के नाम बदल दिए हैं। उसकी इस हरकत पर हर बार भारत की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया दी जाती रही है, फिर भी वह अपनी चालबाजी से बाज नहीं आता। भारत ने फिर दोहराया है कि अरुणाचल हमेशा से भारत का अंग रहा है और रहेगा। नाम बदल देने से कोई जगह किसी और की नहीं हो जाती।

भारत में चोरी-छिपे और चालबाजी से घुसपैठ करने की कोशिशें करता रहता है चीन

हालांकि भारत और चीन की सीमारेखा बहुत पहले से चिह्नित है, मगर चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत उसे मानने से इनकार करता रहा है। भारत के हिस्से की जमीन पर कब्जा करने के इरादे से वह चोरी-छिपे और चालबाजी से घुसपैठ करने की कोशिशें करता रहता है। इसी नीति के तहत वह भारत के पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बना कर पुलों, सड़कों, व्यावसायिक केंद्रों आदि का निर्माण कर भारत की सीमा पर तनाव पैदा करने की कोशिश करता रहा है। मगर भारत की सामरिक शक्ति और रणनीतिक सूझ-बूझ के चलते उसे कामयाबी नहीं मिल पाती।

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अभी आपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करने का अभियान चलाया, तब भी चीन उसके समर्थन में उतर आया। भारत ने जब भी पाकिस्तान में पनाह पाए आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डलवाने का प्रयास किया, चीन संयुक्त राष्ट्र में अपने वीटो का प्रयोग कर उसे रोकने की कोशिश करता रहा है, जबकि पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का समर्थन करती रही है।

चीन को हर बार मुंह की खानी पड़ी है

चीन अच्छी तरह जानता है कि केवल जगहों के नाम बदल देने से वह इलाका उसका नहीं हो जाएगा। मगर फिर भी इस तरह की हरकतें करके वह समझता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसे स्वीकार कर लेगा। पिछले ओलंपिक के समय अरुणाचल की दो खिलाड़ियों को इसलिए उसने प्रवेश से रोक दिया था कि अरुणाचल के किसी दस्तावेज पर भारत का नाम वह स्वीकार नहीं करता।

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कुछ मौकों पर तो वह अरुणाचल को अपने नक्शे में शामिल कर दुनिया के सामने साबित करने की कोशिश कर चुका है कि वह उसका इलाका है। मगर भारत की तरफ से मिले सख्त प्रतिरोध की वजह से उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी है। दरअसल, भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक ताकत चीन को चुभती रही है, इसलिए वह चोरी, चालाकी और चालबाजी से भारत को कमजोर करने की चालें चलता रहता है। विचित्र है कि वह सीमा विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने की बातें तो करता है, पर इसके लिए कोई गंभीर पहल कभी नहीं करता।