बच्चों में आमतौर पर नई चीजों को जानने-समझने और परखने की जिज्ञासा होती है। ऐसे में अगर वे नशे का सेवन करने वाले किसी साथी या अन्य व्यक्ति के संपर्क में रहते हैं, तो उन्हें भी यह लत लगने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा मानसिक दबाव और तनाव भी बच्चों को नशे के जाल में धकेल सकता है। देश भर में हाल में किए गए एक अध्ययन में इन पहलुओं को उजागर किया गया है। दिल्ली एम्स के शोधकर्ताओं ने कुछ अन्य शोधार्थियों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि स्कूली छात्रों के बारह साल या इससे कम उम्र में ही नशे की जद में आने का जोखिम बना रहता है। इसका मुख्य कारण आज के दौर में बच्चों का नशीले पदार्थों तक आसानी से पहुंच है। सवाल है कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है? शहर से लेकर गांव तक नशे का जो काला कारोबार फैल रहा है, उसे रोकने के प्रयास जमीनी स्तर पर कारगर साबित क्यों नहीं हो पा रहे हैं?

दरअसल, एम्स का यह अध्ययन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, बंगलुरु और हैदराबाद समेत देश के दस शहरों एवं उनके आसपास के ग्रामीण इलाकों में किया गया। इसमें सरकारी और निजी स्कूली के छात्रों को शामिल किया गया। इस दौरान पंद्रह फीसद छात्रों ने कम से कम एक बार नशीले पदार्थों का सेवन करने की बात स्वीकार की, जबकि दस फीसद ने पिछले एक वर्ष में मादक पदार्थ लेने की बात कही। इससे पता चलता है कि बारह वर्ष या उससे कम उम्र में भी बच्चे नशे का शिकार हो रहे हैं।

अध्ययन के दौरान एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी सामने आया कि कई बार बच्चे पारिवारिक कलह से उपजे तनाव को कम करने के लिए भी नशीले पदार्थों का सहारा लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए पारिवारिक माहौल का स्वस्थ होना कितना जरूरी है। अभिभावकों की यह भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के साथ नियमित संवाद करें तथा उन्हें सही और गलत का बोध कराएं। साथ ही शासन-प्रशासन को भी चाहिए कि नशे के कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए उसकी जड़ों पर प्रहार किया जाए।