राजधानी दिल्ली में एक नाबालिग किशोर के साथ हुई बर्बरता यही दर्शाती है कि कम उम्र के बच्चों के लिए खतरा और बढ़ता जा रहा है। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में रहने वाले चार लोगों ने बंदूक की नोक पर सत्रह वर्ष के एक बच्चे को न केवल बुरी तरह मारा-पीटा, घसीटा, जूते चाटने पर मजबूर किया, बल्कि उसे परेशान और अपमानित करने के लिए उसका यौन उत्पीड़न भी किया और इस सबका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि किशोर से ऐसा बर्ताव करने वाले आरोपी किस कदर घृणा और विकृति से भरे हुए होंगे।

आरोपियों के भीतर न केवल कानून का खौफ नहीं था, बल्कि वे इस बात को लेकर भी बेफिक्र थे कि जब कानून के हाथ उन तक पहुंचेंगे तब उन्हें क्या सजा मिल सकती है। सही है कि आपराधिक घटनाएं पहले भी होती रही हैं। मगर आपराधिक मानस वालों के और ज्यादा विकृत होते जाने की क्या वजहें हो सकती हैं और अपराधियों के निशाने पर अब कम उम्र के बच्चे ज्यादा क्यों आने लगे हैं।

दरअसल, पिछले कुछ समय से अपराधों की बदलती प्रकृति और उसमें निशाने पर बच्चों का आना गंभीर चिंता की बात है। आए दिन ऐसी वारदात सामने आ रही हैं, जिसमें या तो किसी बच्चे की हत्या कर दी गई या फिर उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। जो लोग पहले से ही अपराध की दुनिया में होते हैं, उनके लिए कमजोर होने के नाते बच्चे आसान शिकार होते हैं, वहीं आसपास बदलते माहौल, अपराध और अश्लील सामग्री तक बेलगाम पहुंच की वजह से कई बार सहज जीवन जीते कुछ लोग भी विकृति का शिकार होकर बच्चों को निशाना बनाते हैं।

हाल ही में हाथरस में एक स्कूल के संचालक ने महज अपने स्कूल की तरक्की के लिए अंधविश्वास में आकर एक बच्चे की बलि देनी चाही और बच्चे के शोर मचा देने पर उसकी गला दबा कर हत्या कर दी। यानी चौतरफा बनती परिस्थितियों में बच्चों के जीवन के सामने खतरा बढ़ रहा है। अगर समय रहते नीतिगत और जमीनी स्तर पर ठोस पहलकदमी नहीं हुई, तो भविष्य के समाज और उसमें बच्चों की स्थिति की बस कल्पना भर की जा सकती है।