अगर माता-पिता अपने बच्चे को वक्त बर्बाद न करने और पढ़ाई करने की हिदायत देते हैं, तो यह बच्चों के हित में ही होता है। मगर विडंबना है कि आजकल बहुत सारे बच्चों में ऐसी प्रवृत्ति देखी जा रही है, जो उनके भावनात्मक या मानसिक रूप से बेहद कमजोर होने का संकेत देती है। बहुत मामूली बातों पर किसी बच्चे के भीतर इतना गुस्सा उभरता है कि या तो वह प्रतिक्रिया स्वरूप अपने सामने के किसी व्यक्ति को या फिर खुद को ही नुकसान पहुंचा देता है।
पिछले कुछ समय से अक्सर ऐसी खबरें सामने आने लगी हैं, जिनमें अभिभावक ने अपने बच्चे को पढ़ाई करने के लिए थोड़ा डांटा तो बच्चा इस कदर तनाव में आ गया कि उसने आत्महत्या कर ली। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से शनिवार को ऐसी ही एक खबर आई, जिसमें बारहवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली सत्रह वर्ष की एक बच्ची को उसके पिता ने पढ़ाई करने के लिए थोड़ी डांट लगाई, तो उसके बाद बच्ची ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली।
मानसिक उथल-पुथल के नाजुक दौर से गुजर रहे बच्चे
इससे पहले, हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में भी एक बच्ची ने सिर्फ इसलिए अपनी जान दे दी कि उसकी मां ने उसे ज्यादा मोबाइल देखने के बजाय पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा। बच्चों के भीतर उभर रही इस तरह की प्रवृत्ति व्यापक चिंता का कारण बनने लगी है। यह कहा जा सकता है कि किशोरावस्था में कई स्तर पर मानसिक उथल-पुथल के नाजुक दौर से गुजर रहे बच्चों से संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए।
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लेकिन इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि बच्चों के भीतर सहनशीलता और धैर्य की इस कदर कमी होने के पीछे कौन-सी परिस्थितियां और वजहें जिम्मेदार हैं कि वे अपने अभिभावकों की वैसी बातों पर भी काबू खो बैठते हैं, जो उनके हित के लिए कही गई होती हैं। मानवीय व्यवहार की कसौटियां और आधुनिक तकनीकी के संजाल के बीच इस जटिल होती समस्या पर समय रहते विचार करने की जरूरत है कि बच्चों के साथ बर्ताव और उनके भीतर प्रतिक्रिया के मामले में किस तरह एक संतुलित और परिपक्व समझ का विकास किया जा सकता है।