हाल ही में चंडीगढ़ मेयर चुनाव के बाद पीठासीन अधिकारी ने जो किया, उस मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है। मगर इस बीच वहां पार्षदों के पाला बदलने की खबरें आई हैं, उससे यही लगता है कि चुनावी भ्रष्टाचार के बरक्स चुने गए प्रतिनिधियों का पक्ष एक गंभीर समस्या बन चुकी है। गौरतलब है कि मतगणना के दौरान उभरे विवाद के तूल पकड़ने पर भाजपा के महापौर बने मनोज सोनकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

तीन पार्षदों के पक्ष बदलने से बीजेपी को ही फायदा

दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों के भाजपा में शामिल होने की खबर आई। इस पक्ष बदलने की औपचारिक घोषणा होती है, तो निगम में अब भाजपा पार्षदों के कुल मतों की संख्या अठारह हो जाएगी, जो भाजपा को अपने महापौर, उपमहापौर और वरिष्ठ महापौर चुनने के लिए पर्याप्त है। मेयर चुनाव के नतीजों के दौरान जो विवाद उभरा था, वह अब सुप्रीम कोर्ट में है और इस पर अदालत की सख्त टिप्पणियां आ चुकी हैं। सोमवार को भी शीर्ष अदालत ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप के लिए पीठासीन अधिकारी पर मुकदमा चलाने की बात कही।

नए चुनाव होने पर भी नतीजा वैसा ही रहेगा

अब नई तस्वीर यह है कि अगर किन्हीं हालात में मेयर चुनाव नए सिरे से होते हैं, तब संख्या बल के हिसाब से नतीजे भाजपा के पक्ष में जाने की ही संभावना है। सवाल है कि मेयर चुनाव में भाग लेने वाले गैरभाजपा दलों की ओर से मतपत्रों के साथ छेड़छाड़ की जो शिकायत की गई थी, वह सही साबित होती भी है तो नतीजा क्या होगा! जिन पार्षदों के अपना पक्ष बदल लेने की खबरें हैं, कुछ दिनों के भीतर ऐसा क्या हुआ कि उनके सामने अपनी पार्टी को छोड़ देना ही एकमात्र विकल्प बचा?

दरअसल, राजनीतिक गलियारे में अब अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा और जनता के विश्वास जैसे मूल्य बहुत तेजी से छीजते जा रहे हैं। इसमें कई उम्मीदवारों का मकसद किसी तरह जीत कर सिर्फ सत्ता पक्ष में शामिल होना होता है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि ऐसे में चुनाव प्रक्रिया में लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति के लिए कितनी जगह बची है।