इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि किसी धार्मिक आयोजन या सामूहिक रूप से मनाए जाने वाले उत्सव में लोग अपनी आस्था को अभिव्यक्त करने या शामिल होने जाते हैं और वहां महज व्यवस्थागत लापरवाही की वजह से कइयों की जान चली जाती है। मध्य प्रदेश के इंदौर में पिछले हफ्ते श्री बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में रामनवमी के दिन एक पुरानी बावड़ी की छत धंसने से कई लोग उसमें गिर गए और उनमें से छत्तीस की जान चली गई।
इस घटना को किसी हादसे की श्रेणी में ही रख कर देखा जाएगा, लेकिन इससे संबंधित जिस तरह के ब्योरे सामने आए हैं, उससे साफ है कि यह बहुस्तरीय और आपराधिक लापरवाही का मामला है। इसके मुताबिक, मंदिर के प्रबंधन से जुड़े लोगों और समूह की ओर से जानबूझ कर जिस तरह के अवैध निर्माण किए गए और उसके जोखिम की आशंका होने के बावजूद प्रशासन जिस तरह सिर्फ मौखिक हिदायत की औपचारिकता तक सिमटा रहा, वह हादसे के लिए जिम्मेदार कारकों को समझने के लिए काफी है।
सवाल है कि मंदिर प्रबंधन और आयोजकों को बावड़ी को ढक कर बनाई गई जगह के बारे में मालूम होने बावजूद उस पर ज्यादा लोगों को जमा होने से रोकना जरूरी क्यों नहीं लगा! सिर्फ इतने भर से फिलहाल इस त्रासद हादसे से बचा जा सकता था। गौरतलब है कि जिस मंदिर में यह घटना हुई, उसके विस्तार के क्रम में वहां स्थित बावड़ी को सुरक्षित तरीके से ढकने या भरने के बजाय उसके ऊपर सिर्फ गर्डर और फर्शियां डाल कर टाइलें लगवा दी गर्इं।
जबकि उसके नीचे करीब साठ फुट जमीन खोखली थी और उस पर रोज लोग दर्शन के लिए खड़े होते थे। उसी जगह पर मेले के मौके पर ज्यादा लोग जमा हो गए और वह ढकी हुई जगह धंस गई। इसमें जो लोग गिरे होंगे, उनमें से कुछ बचना ही अपने आप में आश्चर्य की बात है। लेकिन इस हादसे में जिन छत्तीस लोगों की मौत हो गई, वे निश्चित रूप से मंदिर प्रबंधन और वहां उत्सव का आयोजन करने वालों की लापरवाही और शासकीय उदासीनता के शिकार हुए।
यह समझना मुश्किल है कि नगर निगम की ओर से बावड़ी को ढकने के तरीके को अवैध मानने के बावजूद संबंधित निकायों को कोई ठोस कार्रवाई करना जरूरी क्यों नहीं लगा! यह भी कहा जा रहा है कि वक्त पर कार्रवाई नहीं हो पाने के पीछे एक स्थानीय नेता और राजनीतिक दबाव भी कारण था। अगर इस तरह के आरोप सही है तो यह शासकीय स्तर पर बरती गई गंभीर कोताही का एक और बड़ा उदाहरण है, जिसके नतीजे में इतने लोगों को जान गंवानी पड़ी।
ऐसी शिकायतें आम हैं कि किसी पर्व-त्योहार के मौके पर अपेक्षा से ज्यादा भीड़ के जमा होने की संभावना के बावजूद आयोजक इसका इंतजाम नहीं करते हैं कि वहां पहुंचे लोग समारोह में सुविधाजनक तरीके से शामिल हों और सुरक्षित लौट जाएं। कई बार ऐसा लगता है कि भारी संख्या में लोगों के पहुंचने और वहां घनघोर अव्यवस्था के बावजूद कोई हादसा नहीं होता है तो यह महज संयोग ही है।
सिर्फ व्यवस्था की कमियों की वजह से नाहक ही लोगों की जान चली जाती है। इस तरह की आपराधिक लापरवाही न केवल आयोजकों की ओर बरती जाती है, बल्कि सरकार या प्रशासन की ओर से भी धार्मिक जमावड़े के दौरान इस मसले पर उदासीन रवैया बदस्तूर कायम रखा जाता है। ज्यादा अफसोसनाक यह है कि देश भर में धार्मिक मेलों या उत्सवों के आयोजन के दौरान भीड़ के जमावड़े, भगदड़ या हादसों की लगातार घटनाओं के उदाहरण सामने आते रहने के बावजूद कोई सबक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती।