भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को महिमामंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी भी गुजरात मॉडल के अलावा जिस एक और मॉडल का बखान करते थे वह छत्तीसगढ़ का खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम था।
ऐसी धारणा बनी या बनाई गई कि रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में भाजपा की लगातार दो बार सत्ता में वापसी की एक प्रमुख वजह वहां सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सफलता थी। इन दावों के बरक्स इस राज्य में पीडीएस का हाल कैसा है यह घपले की खबरों से जाहिर हो जाता है। पीडीएस के लिए चावल की खरीद में हुए भ्रष्टाचार की चर्चा चल ही रही थी कि नमक की खरीद में भी घपला सामने आ गया। दोनों मामलों में तरीका समान है। व्यापारियों से घटिया सामग्री खरीदना और उनसे कमीशन लेना। छत्तीसगढ़ में पीडीएस के तहत हर बीपीएल परिवार को प्रतिमाह दो किलो आयोडीनयुक्त नमक मुफ्त दिया जाता है।
राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कई जिलों में नमूनों की जांच करने पर पाया कि यह नमक तय गुणवत्ता से बहुत घटिया दर्जे का था, आयोडीन की निर्धारित मात्रा की शर्त का भी पालन नहीं किया गया। कायदे से दो स्तरों पर इस नमक की जांच होनी चाहिए थी। एक, आपूर्ति के स्तर पर, जिसकी जिम्मेवारी नागरिक आपूर्ति निगम की है। दूसरे, राशन की दुकानों के स्तर पर, वितरण से पहले।
मगर गुणवत्ता की जांच किसी भी स्तर पर नहीं हुई। होती भी क्यों, जब व्यापारियों को निगम को घटिया नमक और घटिया चावल बेचने की छूट देकर उनसे कमीशन ऐंठने का सुनियोजित खेल चल रहा हो। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने निगम के दफ्तर में छापा मार कर चार करोड़ रुपए बरामद किए थे।
यह रकम व्यापारियों से कमीशन के तौर पर जुटाई गई थी और इसमें ऊपर तक हिस्सा लगना था। चावल घोटाले के कारण नागरिक आपूर्ति निगम के बारह कर्मचारी जेल में हैं। ब्यूरो की कार्रवाई से घटिया खाद्य सामग्री की खरीद और उसके बदले में कमीशनखोरी की जो बात सामने आई है, ऐसा लगता है कि वह पूरे घपले का एक अंश भर है। पूरे घोटाले का आकार और बड़ा होगा, इसमें शामिल लोगों की तादाद भी ज्यादा होगी। क्योंकि घपला पीडीएस की दो-चार दुकानों के स्तर पर नहीं हुआ। बल्कि इसे निगम के दफ्तर में अंजाम दिया जा रहा था।
ऐसा कैसे हो सकता है कि सरकारी खरीद से पैसा बनाने का खेल आला अधिकारियों का हिस्सा लगे बिना चला हो? लेकिन अभी तक कुछ छोटी मछलियों पर ही कार्रवाई हुई है।
छत्तीसगढ़ में पीडीएस की हकीकत बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्डों से भी सामने आई थी। हालांकि राज्य में 2013 के खाद्य सुरक्षा कानून के तहत छप्पन लाख लाभार्थी परिवार ही आते हैं, पर राशन कार्डों की संख्या सत्तर लाख तक पहुंच गई। पिछले साल हुए आम चुनाव के एक महीने बाद राज्य सरकार को राशन कार्डों की प्रामाणिकता जांचने की जरूरत महसूस हुई, और जांच के बाद चौदह लाख कार्ड रद्द कर दिए गए।
दस कनिष्ठ अधिकारी निलंबित किए गए। पर किसी वरिष्ठ अधिकारी को जवाबदेह नहीं ठहराया गया। यह उस राज्य के पीडीएस की कहानी है जिसे भाजपा अन्य राज्यों के लिए आदर्श बताती रही है!
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