एक आदर्श राजनेता वही होता है, जो ईमानदार, जिम्मेदार और जन-हितैषी हो। पारदर्शिता, निष्पक्षता और जनता के प्रति जवाबदेही उनके कार्य का हिस्सा हो। जो आमजन की समस्याओं और जरूरतों को भली-भांति समझे और उनका निराकरण करे। किसी भी जनप्रतिनिधि का यह मूल कर्त्तव्य है कि वह समाज में सौहार्द, शांति, सामंजस्य और सकारात्मक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहे। मगर जब जनता का चुना हुआ नुमाइंदा खुद ही आपराधिक आरोपों के घेरे में आ जाए तो इन सब आदर्शों का क्या महत्त्व रह जाता है? इस तरह के मामले जब बड़ी संख्या में सामने आने लगे तो सियासत में शुचिता के स्तर का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

चुनाव अधिकार संस्था एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की एक हालिया अध्ययन रपट में खुलासा किया गया है कि देश के लगभग 47 फीसद मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। यानी केंद्र और राज्य सरकारों के कुल मंत्रियों में से करीब आधे आपराधिक गतिविधियों में आरोपी हैं। यह आंकड़ा चौंकाने वाला और आम जनमानस को सचेत करने वाला है। सवाल है कि अगर जनप्रतिनिधियों की ही छवि इस तरह की है, तो हम किस तरह के समाज और राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं?

चुनावी हलफनामे में खुद मंत्रियों ने दी जानकारी

रपट के मुताबिक, जिन मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उनमें हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर चालीस फीसद केंद्रीय मंत्रियों ने खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी अपने चुनावी हलफनामे में दी है।

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आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, ओड़ीशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पुदुचेरी में साठ फीसद से ज्यादा मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इससे साफ है कि राजनीति में आपराधिक छवि वाले नेताओं का दबदबा बेरोक-टोक बढ़ रहा है। मगर सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि दागदार नेताओं को संसद या विधानसभा में भेजने और सरकार का हिस्सा बनाने का मौका कौन दे रहा है?

चुनाव आयोग को निश्चित रूप से इन आंकड़ों पर कड़ा संज्ञान लेना चाहिए

सवाल यह भी है कि जनता को कैसे पता चलेगा कि किस नेता का आचरण कैसा है और उस पर आपराधिक मामला दर्ज है या नहीं? इसका जवाब चुनाव आयोग के उस कदम में समाहित है, जिसमें सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया गया है कि वे चुनाव में अपने उम्मीदवार घोषित करने के दौरान उन पर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी भी सार्वजनिक करें। अगर कोई दल इन निर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं करता है, तो चुनाव आयोग को निश्चित रूप से उस पर कड़ा संज्ञान लेना चाहिए।

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यह रपट ऐसे समय पर आई है, जब हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है, जिसमें गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तारी के बाद तीस दिन तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री सहित मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान है। अगर इस विधेयक को रपट के आंकड़ों की नजर से देखा जाए तो केंद्र सरकार की ओर से यह अहम पहल है। मगर इस पहलू पर गौर करना भी जरूरी है कि नीति और नीयत दोनों साफ-सुथरी, निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, तभी व्यवस्था में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। कानून बनाने के साथ-साथ उसे प्रभावी तरीके से लागू करना भी जरूरी है, ताकि समस्याओं को जड़ से उखाड़ा जा सके।