बिहार में मतदाता सूचियों में सुधार की प्रक्रिया पूरी हो गई। निर्वाचन आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण कर मंगलवार को नई मतदाता सूची जारी कर दी। आयोग की इस कवायद को लेकर राज्य में सियासत गरमा गई थी। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सूचियों के पुनरीक्षण पर सवाल उठाए गए। दस्तावेजी सबूत पर भी खासा विवाद हुआ और मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा। अदालती दखल के बाद ही आधार को नागरिकता दस्तावेजों की सूची में शामिल किया गया और मतदाताओं को इससे अपनी पात्रता साबित करने का मौका मिला।
नई मतदाता सूची के मुताबिक, राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या सात करोड़ बयालीस लाख है। इससे पहले इस वर्ष जून में यह संख्या 7.89 करोड़ थी। इस लिहाज से मतदाताओं की संख्या छह फीसद कम हो गई है। अड़सठ लाख से ज्यादा नाम काटे गए हैं। इनमें पैंसठ लाख नाम एक अगस्त को मसौदा सूची प्रकाशित होने पर और दावे एवं आपत्तियों के चरण में तीन लाख छियासठ हजार नाम अंतिम सूची से हटाए गए।
चुनाव आयोग का कहना है कि हटाए गए कुल नामों में से करीब दो लाख लोग ऐसे हैं, जो राज्य से बाहर जा चुके हैं। इसमें दोराय नहीं कि मतदाता सूचियों में शुचिता के लिए समय-समय पर पुनरीक्षण होना चाहिए। मृत और अयोग्य लोगों के नाम हटने चाहिए। आयोग के मुताबिक, इस बार अस्सी हजार ऐसे लोग थे, जिनके नाम दो बार दर्ज पाए गए। हालांकि इस प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज कराने का मौका दिया गया था।
नई मतदाता सूची में अगर छह फीसद नाम घटे हैं, तो इक्कीस लाख तिरपन हजार नए मतदाता जुड़े भी हैं। ऐसे में अगर कोई मतदाता खुद के योग्य होने के बावजूद नाम कटने का सवाल उठता है तो चुनाव आयोग को चाहिए कि इस तरह की आपत्तियों का समय रहते निराकरण किया जाए। कोई भी पात्र नागरिक मतदान से वंचित न हो, यह सुनिश्चित करना आयोग की ही जिम्मेदारी है। चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखना लोकतांत्रिक व्यवस्था में अत्यंत आवश्यक है।