बिहार में पिछले कुछ दिनों के भीतर आपराधिक घटनाओं में जैसी तेजी आई है, उससे यही लगता है कि सरकार के हाथ से सब कुछ छूट गया है और अपराध को अंजाम देने वाले बेलगाम हैं। पिछले हफ्ते पटना में एक व्यवसायी और सीवान में तीन लोगों की हत्या की घटना से उपजा तूफान अभी शांत भी नहीं हुआ था कि सोमवार को राज्य में चौबीस घंटे में नौ लोगों की हत्या कर देने की घटनाएं सामने आईं।
सबसे दहलाने वाली खबर पूर्णिया जिले के टेटमा गांव से आई, जहां ‘जादू-टोना’ के संदेह में एक ही परिवार के पांच लोगों को क्रूरता से मारा-पीटा गया और फिर जिंदा जला दिया गया। इस घटना की जड़ें अंधविश्वास और अराजकता से जुड़ी हुई हैं, जिसमें कहीं से ऐसा नहीं लगता कि वहां सरकारी तंत्र की मौजूदगी रही हो या फिर वहां लोगों के भीतर पुलिस या कानून का कोई भय हो।
बच्चे की बीमारी नहीं ठीक हो पाने पर दिया घटना को अंजाम
गौरतलब है कि एक बच्चे की बीमारी नहीं ठीक हो पाने के बाद कुछ लोगों ने ‘डायन’ बता कर एक ही परिवार के पांच लोगों की जान ले ली। इस घटना के दौरान वहां दो सौ से ज्यादा लोगों की भीड़ मौजूद थी और अराजकता चरम पर थी।
निश्चित तौर पर यह कानून-व्यवस्था की नाकामी है, लेकिन हकीकत यह भी है कि बहुत सारे लोगों को अंधविश्वास के अंधरे में जीने-मरने के लिए छोड़ दिया गया है! एक ओर, विज्ञान की उपलब्धियों के रोज नई ऊंचाइयों को छूने का जश्न मनाया जाता है, वहीं वैज्ञानिक चेतना से दूर बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास में आकर किसी की हत्या करने से भी नहीं हिचकते। जबकि यह उन्हें कानून के कठघरे में खड़ा कर सकता है और कई लोगों की जिंदगी जेल में कट सकती है।
‘डायन’ जैसे अंधविश्वास की वजह से आए दिन वंचित तबकों की महिलाओं की हत्या कर दिए जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। यह अफसोसनाक है कि ऐसे मौकों पर सरकार कानूनी कार्रवाई की औपचारिकता तो पूरी करती दिखती है, लेकिन इस समस्या की जड़ों पर चोट करने के लिए बहुत सक्रिय नहीं होती। जब तक समाज में अंधविश्वास पर आधारित धारणाओं को दूर करने के लिए ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम नहीं किया जाता, तब तक लोगों को इसके मकड़जाल से निकालना मुश्किल होगा।