कहते हैं, गठबंधन की सरकार चलाना तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा होता है। इसलिए कई बार राजनीतिक दलों को अपने घोषित सिद्धांतों से समझौता भी करना पड़ता है। मगर जिस तरह बिहार में सियासी उलट-फेर हुआ है, वह विचित्र है। नीतीश कुमार ने एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल से नाता तोड़ कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। फिर वे उसी भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना रहे हैं, जिससे सत्रह महीने पहले नाता तोड़ते हुए कहा था कि भाजपा के साथ जाना उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। तब उन्होंने यह संकल्प भी दोहराया था कि चाहे उनकी जान चली जाए, पर वे भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। मगर सत्रह महीने बाद फिर उसके साथ हो लिए।

राजनीतिक गठबंधन में मतभेद कोई नई बात नहीं, मगर राजद के साथ उनके क्या ऐसे मतभेद थे, जिसकी वजह से उन्होंने उससे अलग होने का फैसला किया, यह कई लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। दरअसल, राजद के साथ उनकी पार्टी के संबंध बिल्कुल सहज और सामान्य ही दिख रहे थे। नीतीश कुमार के इस तरह पाला बदलने से निश्चय ही अगर किसी को फायदा हुआ है, तो वह है भाजपा। आम चुनाव नजदीक हैं और बिहार में भाजपा के लिए कठिन चुनौती मानी जा रही थी, वह चुनौती अब आसान हो जाएगी।

सबसे बड़ी बात कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में नीतीश कुमार की सक्रियता से भी भाजपा को मुश्किलें पेश आ रही थीं। यह गठबंधन चूंकि नीतीश कुमार की पहल पर ही बना था, माना जा रहा था कि अगले लोकसभा चुनाव में यह भाजपा को टक्कर दे सकता है। नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिला लेने के बाद वह गठबंधन कुछ और कमजोर हो गया है। ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी सीट बंटवारे को लेकर पहले ही अपना एतराज जता और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला सुना चुके हैं। इस तरह यह भाजपा की दूसरी बड़ी कामयाबी कही जा सकती है।

हालांकि नीतीश कुमार के पाला बदलने की अटकलें कई दिन पहले से लगाई जा रही थीं, मगर राजद के साथ उनके मनमुटाव की वजहें स्पष्ट नहीं थीं। नीतीश कुमार ने इतना भर कहा है कि उनके लोग दिन-रात मेहनत करके काम कर रहे थे और श्रेय दूसरे लोग ले जा रहे थे, इसलिए उनकी पार्टी में इसे लेकर नाराजगी थी। मगर भाजपा के साथ उन्हें अब कोई मुश्किल नहीं आएगी, इसका दावा वे शायद ही कर पाएं, क्योंकि उससे अलग होते समय भी नीतीश कुमार ने यही तर्क दिया था।

राजद के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने निस्संदेह कई महत्त्वपूर्ण काम किए, जिसकी पूरे देश में सराहना हुई। उन्होंने जाति जनगणना कराया, खाली पदों पर त्वरित ढंग से भर्तियां कराईं। इस तरह नीतीश कुमार सरकार पर वहां के लोगों में भरोसा मजबूत हुआ। मगर अब उनके ताजा फैसले से निराशा नजर आने लगी है। भाजपा के साथ मिल कर वे सरकार तो चला लेंगे, मगर प्रदेश के लोगों का भरोसा कितना जीत पाएंगे, देखने की बात होगी।

पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ा था। अब जब आम चुनाव नजदीक हैं, भाजपा के साथ जाकर वे उस नुकसान की कितनी भरपाई कर पाएंगे, कहना मुश्किल है। भाजपा से अलग होकर उन्होंने राजद का हाथ पकड़ा था, तो उनकी काफी सराहना हुई थी। अब उनकी साख इस बात पर निर्भर करेगी कि नई गठबंधन सरकार में वे कितने जन कल्याणकारी फैसले करते हैं।