भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते को मौजूदा दौर में दुनिया भर में जारी बहुस्तरीय तनाव और दबाव की राजनीति के बीच एक बेहतर कूटनीतिक कामयाबी के तौर पर देखा जा सकता है। यह छिपा नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से शुल्क के मोर्चे पर किस तरह का द्वंद्व खड़ा कर दिया है।
हालांकि भारत ने अब तक अमेरिका की ओर से पैदा किए गए किसी दबाव के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया है और उसने नए विकल्पों को खड़ा करने और पुराने को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के अपने समकक्ष के साथ गुरुवार को एक ऐतिहासिक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार में लगभग चौंतीस अरब डालर की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।
दूसरी ओर, यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद ब्रिटेन का यह किसी देश के साथ सबसे बड़ा और आर्थिक रूप से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यापार समझौता है। इस समझौते से निन्यानबे फीसद भारतीय निर्यात पर शुल्क समाप्त होने के साथ ब्रिटिश कारों, विस्की और कई अन्य वस्तुओं पर लगने वाले शुल्क में भी कटौती होगी।
गौरतलब है कि भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते को इस निष्कर्ष तक पहुंचने में करीब तीन वर्ष लगे। दरअसल, फिलहाल दुनिया जिस तरह शुल्क के मसले पर व्यापार युद्ध के कगार पर है, उसमें समझौते के हर बिंदु पर कानूनी जांच और आटोमोबाइल उद्योग के संदर्भ में शुल्क छूट से जुड़े मसलों पर विचार करना लाजिमी था।
अगर यह द्विपक्षीय समझौता जमीन पर उतरता है, तो भारत के वस्त्र, जूते, समुद्री खाद्य पदार्थ, इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषणों का निर्यात ब्रिटेन के बाजार में और बेहतर पहुंच बना सकेगा। साथ ही भारत के कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों के लिए भी नई राह खुलने के मौके बनेंगे और इस तरह देश के युवा वर्ग और किसानों के लिए नई संभावनाओं का दरवाजा खुल सकता है। वहीं, ब्रिटेन के चिकित्सा उपकरणों और कल-पुर्जे जैसे उत्पाद अब भारत में अपेक्षया कम कीमत पर उपलब्ध हो सकेंगे।
हालांकि बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े मसले पर आाशंकाएं जताई जाती रही हैं, इसलिए भारत को आगे भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि स्वास्थ्य का अधिकार, सस्ती दवाओं की उपलब्धता और न्यायपूर्ण पेटेंट प्रणाली प्राथमिक चिंता की बात होनी चाहिए।
भारत और ब्रिटेन के बीच यह द्विपक्षीय समझौता ऐसे समय में सामने आया है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी शर्तों पर अन्य कई देशों को आर्थिक मसलों पर प्रभावित और संचालित करने की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की सुविधा के मुताबिक फैसले नहीं लेने पर बेलगाम शुल्क और इससे आगे पाबंदी लगाने तक की बात के बीच किस तरह का व्यापार समझौता सामने आएगा, यह समझा जा सकता है।
दो देशों के बीच होने वाली बातचीत जब तक द्विपक्षीय और समान हित सुनिश्चित करने की नीति पर आधारित नहीं होगी, तब तक उसका हासिल भी कुछ ठोस नहीं निकलेगा। भारत और ब्रिटेन के बीच हुआ ताजा करार इस बात का उदाहरण है कि दो देशों के बीच एक समझौते को कैसे एक बेहतर स्वरूप दिया जा सकता है। यों विकसित देशों की ओर से जिस तरह अपने फायदे में शर्त आधारित संबंधों को कूटनीति का फार्मूला बनाया जाता रहा है, उसमें भारत को भी अपने हित के प्रति सजग और सतर्क रहने की जरूरत है।