बांग्लादेश में सत्तापलट के बाद जिस तरह वहां रह रहे हिंदू अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों पर हमले लगातार बढ़े हैं, उसे लेकर भारत सरकार की चिंता स्वाभाविक है। हालांकि अंतरिम सरकार के मुखिया के रूप में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने जिम्मेदारी संभाली, तो उम्मीद बनी थी कि वहां स्थितियां कुछ बदलेंगी, मगर ऐसा होता अभी तक नजर नहीं आ रहा। दो दिन पहले भी ढाका के एक इस्कान मंदिर में तोड़-फोड़ कर आग लगा दी गई। इस संगठन से जुड़े एक संन्यासी को वहां की पुलिस पहले ही देशद्रोह के आरोप में सलाखों के पीछे डाल चुकी है।
भारत में भी दिख रहा आक्रोश
इन घटनाओं को लेकर भारतीय आमजन में भी खासा आक्रोश नजर आने लगा है। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इस स्थिति में भारत सरकार ने विदेश सचिव को ढाका भेजने का उचित फैसला किया है। बांग्लादेश सरकार ने भी भारतीय विदेश सचिव की यात्रा को लेकर उत्साह जताया है। उम्मीद की जा रही है कि इस यात्रा से वहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को रोकने का कोई कारगर रास्ता तलाशने में मदद मिलेगी। मगर देखने की बात है कि बांग्लादेश सरकार इस मामले में कितना सकारात्मक रुख अपनाती है।
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हालांकि हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले का सिलसिला कोई नया नहीं है। शेख हसीना सरकार के समय भी वहां हिंदुओं और हिंदू पूजा स्थलों पर हमले होते थे, मगर उन्होंने उसे इस कदर फैलने से रोक दिया था, जैसा अब दिखाई दे रहा है। मोहम्मद यूनुस ने सत्ता की बागडोर संभालने के साथ ही विश्वास दिलाया था कि वे अल्पसंख्यकों पर किसी भी तरह की ज्यादती बर्दाश्त नहीं करेंगे, मगर हकीकत यही है कि उनका प्रशासन ऐसे हमलों और हिंसक घटनाओं को रोकने में विफल साबित हो रहा है।
बांग्लादेश सरकार की नाकामी
भारत ने इन घटनाओं पर कई बार गंभीर चिंता जताई, फिर भी बांग्लादेश सरकार उस पर काबू नहीं पा रही, तो यह उसकी नाकामी ही कही जाएगी। भारत और बांग्लादेश के बीच बहुत पुराने और सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं। हालांकि विभाजन के बाद वहां से हिंदुओं को बाहर निकालने का बड़ा अभियान चला था, मगर वह ऐसे कटु वातावरण में नहीं हुआ था, जैसा अब देखा जा रहा है। अगर बांग्लादेश सरकार अपने नागरिकों के इस नफरती अभियान को रोकने में गंभीरता नहीं दिखाएगी, तो दोनों देशों के रिश्तों पर बुरा असर पड़ेगा।
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किसी भी लोकतांत्रिक सरकार से अपेक्षा की जाती है और यह उसका फर्ज भी है कि अपने यहां रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को हर तरह से संरक्षण दे। भारत सरकार ने शेख हसीना को अपना यहां शरण दी, तो वह उसका फर्ज था। अगर इसे लेकर वहां के आम लोगों में किसी तरह का रोष है और वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों या हिंदू धर्म को मानने वालों पर वह गुस्सा निकल रहा है, तो उसे शांत करना वहां की सरकार का दायित्व है।
अगर धार्मिक विद्वेष की वजह से ऐसे हमले हो रहे हैं, तो यह वहां की सरकार के लिए अधिक चिंता विषय होना चाहिए। इसलिए कि धार्मिक आधार पर की जाने वाली घटनाओं पर चुप्पी साध लेना किसी भी लोकतांत्रिक सरकार की निशानी नहीं मानी जा सकती। मोहम्मद यूनुस सुलझे हुए और लोकतांत्रिक मूल्यों के पैरोकार माने जाते हैं। अगर उनकी अगुआई वाली सरकार के वक्त में धार्मिक उन्माद पर काबू पाने में विफलता नजर आ रही है, तो इससे उनकी प्रशासनिक क्षमता पर गहरा सवाल उठता है।