भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में सुधार संबंधी न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश से विश्व की इस सर्वाधिक अमीर खेल संस्था की कार्यप्रणाली में सुधार होने और पारदर्शिता आने की उम्मीद जगी है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को दो टूक कह दिया कि बीसीसीआई को लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करनी ही होंगी और इस मामले में ‘दूसरी पारी की कोई गुंजाइश नहीं है।’

उसके मुताबिक ये सिफारिशें सीधी, तर्कसंगत, समझ में आने योग्य और सम्मान की हकदार हैं, लिहाजा इन्हें लागू करने के बारे में चार हफ्तों के भीतर अदालत को जवाब दिया जाए। गौरतलब है कि क्रिकेट में सट्टेबाजी और भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर उसे जांच करने और सुधार के उपाय सुझाने का जिम्मा सौंपा था। समिति ने पिछले महीने के शुरू में कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में अनेक अहम सुझाव दिए हैं जिन्हें लागू करने की बाबत बीसीसीआई के ढीले रवैये पर शीर्ष अदालत ने उसे उचित ही चेताया है। इन सिफारिशों पर अमल के सिलसिले में बीसीसीआई के संकोच के पीछे असल कारण कुछ सिफारिशों का उसके लिए असुविधाजनक होना है।

मसलन, समिति के अनुसार बीसीसीआई को सूचनाधिकार के दायरे में लाया जाए, सत्तर साल की उम्र के बाद किसी को पदाधिकारी न बनाया जाए और न किसी को दो बार से ज्यादा का कार्यकाल दिया जाए। इसके साथ ही मंत्रियों-अधिकारियों को पदाधिकारी न बनाने, एक राज्य से एक वोट का प्रावधान, सट्टेबाजी को वैध बना कर उसके लिए भीतर से ही नियंत्रण की कोई व्यवस्था करने, क्रिकेट संबंधी मामले निपटाने के लिए पूर्व क्रिकेट खिलाड़ियों को जिम्मेदारी देने आदि सिफारिशें की गई हैं। इनमें सट्टेबाजी को वैध बनाने और एक राज्य से एक वोट निर्धारित करने, इन दो सुझावों पर जरूर विवाद है, मगर अन्य सिफारिशों का आमतौर पर सभी ने स्वागत किया है। बीसीसीआई को उन्हें लागू करने में संकोच क्यों होना जाहिए?

असल में इन सिफारिशों को अमली जामा पहनाने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बीसीसीआई पर वर्षों से काबिज नेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों की तिकड़ी के स्वार्थ हैं। राजनीति के अनेक खिलाड़ियों ने खेल संघों को भी अपने सियासी खेल का अखाड़ा बना रखा है। इस पर अक्सर अंगुलियां उठाई जाती रही हैं। मजे की बात है कि संसद या विधानसभाओं में विभिन्न पार्टियों के एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा नेता क्रिकेट सहित तमाम खेल संघों पर कब्जा जमाने की तिकड़में करते हुए सहोदर बन जाते हैं। बीसीसीआई पदाधिकारियों के चुनाव में वोट बटोरने के लिए वे सब तरीके अपनाए जाते हैं जिन्हें चुनाव आयोग अवांछनीय ठहराता रहा है।

ऐसे राजनीतिक स्वार्थ चोर दरवाजे तलाशे बिना बीसीसीआई को अपनी गिरफ्त से भला कैसे छूटने देना चाहेंगे! देश के नामी खिलाड़ियों, क्रिकेट विशेषज्ञों और खेल प्रेमियों ने भी लोढ़ा समिति के अधिकतर सुझावों को भारतीय क्रिकेट में आमूलचूल सुधार की दिशा में मील का पत्थर बता कर इन्हें तुरंत लागू करने की मांग की है। वैसे बीसीसीआई की मंशा कुछ कानूनी अड़चनों के हवाले भी इन सिफारिशों पर अमल को टालने की लगती है, लेकिन सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने हर कानूनी बाधा दूर कर समाधान निकालने की बात कही है तो बोर्ड क्यों सुधारों से बचना चाहता है? यह रवैया तो उसके आचरण को और संदिग्ध ही बनाएगा।