इसे लेकर संसद में गतिरोध बना हुआ है। विपक्ष इस पर चर्चा कराने की मांग कर रहा है, तो सत्तापक्ष इससे किनारा करता दिख रहा है। हालांकि घटना के प्रकाश में आने पर रक्षामंत्री ने संसद में सरकार का पक्ष रखा था, मगर विपक्षी दल उससे संतुष्ट नहीं हैं।

वे सरकार से जानना चाहते हैं कि आखिर चीन की घुसपैठ की सूचना को छिपाए क्यों रखा गया और यह भी कि सरकार ने चीन को लेकर क्या रणनीति बनाई है। उधर अपनी पदयात्रा के बीच राहुल गांधी ने एक प्रेसवार्ता में कह दिया कि सीमा पर चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों की ‘पिटाई’ कर रहे हैं। इसे लेकर सत्तापक्ष हमलावर है कि इस तरह के बयानों से सेना का अपमान होता, उसका मनोबल गिरता है और उसका इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह संसद में अब हंगामे का केंद्र बिंदु चीन की घुसपैठ से खिसक कर सेना के अपमान और मनोबल पर पहुंच गया है। यानी प्रकारांतर से दोनों ने सेना को अपनी राजनीतिक रस्साकशी का जरिया बना लिया है।

हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब सेना को राजनीति में घसीटने का प्रयास किया जा रहा है। मुद्दा सेना के साहस और मनोबल का नहीं है। असल विषय है चीन की घुसपैठ का। यह अच्छी बात है कि भारतीय सैनिकों ने चीन की रणनीति पर पानी फेर दिया और उसके सैनिकों को वापस लौटना पड़ा। मगर यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि आखिर चीन ने यह हिमाकत की कैसे। अगर सरकार सचमुच कूटनीतिक रूप से उस पर दबाव बनाए रहती, तो शायद वह ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता था।

फिर इस बात पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि चीन की तरफ से बार-बार हो रही ऐसी हरकतों पर कैसे विराम लगाया जाए। कुछ समय पहले तक उसने लद्दाख क्षेत्र में भी लंबे समय तक तनाव की स्थिति पैदा किए रखी। ऐसे मामलों में परंपरा रही है कि सत्तापक्ष सभी दलों के साथ मिल-बैठ कर चर्चा करता और फिर देश को विश्वास में लेकर कोई व्यावहारिक कदम उठाता रहा है।

मगर सरकार ने इस तकाजे को समझना तो दूर, एक तरह से इस पर परदा डालने का ही प्रयास किया है। इसलिए भी विपक्षी दलों को इसका राजनीतिक लाभ लेने का मौका मिला है। किसी देश के सुरक्षाबलों का सीमा के भीतर घुस आना और हमारे सुरक्षाबलों से गुत्थमगुत्था हो जाना निस्संदेह संवेदनशील मामला है, इसे ढंकना-छिपाना या इस पर चुप्पी साधे रखना किसी भी रूप में सवालों से परे नहीं माना जा सकता।

मगर हैरानी की बात है कि सैन्य रणनीति से जुड़े इस संवेदनशील मामले को सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों राजनीतिक रंग देने पर तुले हुए हैं। प्रतिरक्षा से जुड़े फैसले गोपनीय रखे जाते हैं, उसकी रणनीतियां इस तरह राजनीति के केंद्र में नहीं लाई जातीं। इससे दुश्मन देश को अपनी रणनीति बनाने में मदद मिलती है। मगर पिछले कई सालों से देखा जा रहा है कि सेना की गतिविधियों को राजनीतिक मंचों से मुद्दा बना दिया जाता है। यहां तक कि चुनाव में भी उन्हें भुनाने की कोशिश की जाती है। इस तरह सेना के मनोबल पर तो प्रतिकूल असर पड़ेगा ही, चीन को भी इस राजनीतिक रस्साकशी का लाभ उठाने का मौका मिल सकता है।