इन दिनों चीन के हांगझाउ शहर में एशियाई खेल चल रहे हैं। माना जाता है कि खेलों के आयोजन और साहित्य, कला, संस्कृति के आदान-प्रदान से देशों के बीच रिश्ते मजबूत होते हैं। मगर इन खेल प्रतिस्पर्धाओं के बीच चीन ने भारत के साथ अपना पुराना खेल खेलना शुरू कर दिया। अरुणाचल प्रदेश की रहने वाली तीन भारतीय मार्शल खिलाड़ियों को उसने एशियाई खेलों में प्रवेश देने से मना कर दिया।
इस पर भारत ने तुरंत कड़ी प्रतिक्रया दी है। युवा मामले एवं खेल मंत्री ने अपनी चीन यात्रा रद्द कर दी है, जो खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने वहां जा रहे थे। हालांकि इस घटना के पीछे एक तर्क यह दिया जा रहा है कि जिन तीन खिलाड़ियों को एशियाई खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया गया है, वे अपना मान्यता कार्ड नहीं निकाल पाई थीं।
दरअसल, वही मान्यता कार्ड उनके वीजा के रूप में काम करता है। चीन की एशियाई खेल आयोजन समिति ने उन्हें उसमें हिस्सा लेने की इजाजत दे दी थी। मगर यह तर्क किसी के गले नहीं उतरने वाला है। थोड़ा पीछे लौट कर देखें तो जुलाई महीने में चीन के चेंगदू में आयोजित विश्व विश्वविद्यालय प्रतिस्पर्धा में इन्हीं तीन खिलाड़ियों को चीन ने नत्थी यानी स्टेपल वीजा जारी किया था। नत्थी वीजा देने का मतलब है कि चीन उन्हें भारत का नागरिक नहीं मानता। इससे नाराज होकर भारत ने उन तीनों खिलाड़ियों को हवाई अड्डे से वापस लौटा लिया था।
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन का नजरिया किसी से छिपा नहीं है। वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं मानता, बल्कि दक्षिणी तिब्बत के रूप में मान्यता देता है। पिछले महीने ही उसने जो अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, उसमें अरुणाचल प्रदेश, ताइवान, अक्साई चिन और विवादित दक्षिण चीन सागर को अपने हिस्से में दिखाया था।
हालांकि भारत ने उस नक्शे को खारिज कर दिया था, मगर चीन ने अब तक उसमें कोई बदलाव नहीं किया है। इससे पहले अप्रैल में उसने अरुणाचल की ग्यारह जगहों के नाम बदल दिए थे। इससे स्पष्ट है कि जिन तीन खिलाड़ियों को उसने एशियाई खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया, उसके पीछे उसका यही नजरिया है। भारत ने स्पष्ट कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अंग रहा हैै और रहेगा।
मगर इस प्रतिक्रिया का चीन पर कितना असर पड़ेगा, दावा नहीं किया जा सकता। जब अप्रैल में उसने अरुणाचल के ग्यारह स्थानों का नाम बदला था, तब भी भारत ने उसे उसकी पुरानी आदत कह कर नजरअंदाज करने की नसीहत दी थी। फिर नक्शे में बदलाव किया गया, तब भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी गई थी।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन अरुणाचल, ताइवान आदि क्षेत्रों पर कब्जे का मौका तलाशता रहता है, मगर पिछले कुछ सालों में उसकी तरफ से किए गए प्रयासों के मद्देनजर अब इसे उसकी पुरानी आदत कह कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत वाले हिस्से में सड़क, पुल, छावनी वगैरह बनाने और गश्ती बिंदुओं पर कब्जा जमाने को लेकर समझौते के प्रयास जारी हैं।
वह सीमा विवाद संबंधी बैठकों में हिस्सा लेकर उसे सुलझाने का भरोसा दिलाता तो दिखता है, मगर वास्तव में उसका इरादा अपने क्षेत्र के विस्तार का ही रहता है। हालांकि भारतीय सेना सीमाओं पर उसके अतिक्रमण की कोशिशों को नाकाम करती रही है, मगर जिस तरह अरुणाचल को लेकर उसकी हरकतें सामने आ रही हैं उसमें कड़े कूटनीतिक कदम उठाने की दरकार है।