उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अपने कामयाब शासनकाल के प्रचार में सबसे ज्यादा जोर इस पर दिया जाता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान राज्य में अपराध पर काबू पाने के लिए जो अभियान चलाए गए, उससे वहां आपराधिक मानसिकता वाले खौफ से भरे हुए हैं और अपराध रुक गए हैं। मगर हकीकत यह है कि कुछ प्रचारित मामलों को छोड़ दिया जाए तो राज्य में अपराधियों का मनोबल बढ़ गया लगता है। वे अब सामूहिक कत्लेआम करने से भी बाज नहीं आ रहे।

शिक्षक और परिवार की हत्या से कानून-व्यवस्था पर सवाल

अमेठी जिले में एक शिक्षक, उसकी पत्नी और दो बच्चों की हत्या से जाहिर है कि राज्य में संगठित अपराधी हों या आपराधिक मानसिकता वाले लोग, उनके भीतर पुलिस या कानून का कोई खौफ नहीं है। खबर के मुताबिक, हत्या के आरोपी ने रायबरेली से अपनी मोटरसाइकिल से अमेठी पहुंच कर इस हत्याकांड को अंजाम दिया, जिसमें उसने न केवल दंपति, बल्कि उनके दो छोटे बच्चों को भी लाइसेंसी पिस्तौल से गोली मार दी और फरार हो गया।

हालांकि इस मामले में एक से अधिक अपराधियों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है। सच्चाई तो जांच के बाद सामने आएगी, मगर अपराधियों और अपराध का खात्मा करने के सरकारी दावे के बरक्स यह हत्याकांड क्या दर्शाता है?

सवाल है कि सरकार और पुलिस अब जिस सख्ती का दावा कर रही हैं, उसमें ऐसी निरंतरता क्यों नहीं होती, जिससे अपराधियों के भीतर कानून का खौफ पैदा हो! गौरतलब है कि करीब डेढ़ महीने पहले महिला ने छेड़छाड़, विरोध करने पर पति से मारपीट, जान से मारने की धमकी और जातिसूचक टिप्पणियां करने को लेकर एक व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

इस हत्याकांड में मुख्य रूप से उसी व्यक्ति के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है। अब स्वाभाविक ही ये सवाल उठ रहे हैं कि उसके खिलाफ दर्ज मामले में समय रहते ठोस कार्रवाई की गई होती तो क्या चार लोगों की जान बचाई जा सकती थी? किसी अपराध के आरोपी को मुठभेड़ में मारे जाने की सुर्खियां इस हकीकत का जवाब नहीं हो सकतीं कि राज्य में आए दिन होने वाली आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधी बेखौफ दिखने लगे हैं।