अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शायद विश्व राजनीति में धमकी की नई परंपरा कायम करने पर तुले हैं। अब उन्होंने रूस से कच्चा तेल खरीदने वालों को धमकाया है कि जो ऐसा करेगा, वह अमेरिका में कारोबार नहीं कर पाएगा। ऐसे देशों पर पच्चीस से पचास फीसद तक अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। यह धमकी उन्होंने इसलिए दी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने की दिशा में न तो रूस और न ही यूक्रेन ने अपेक्षित सहयोग का रुख दिखाया है। इससे ट्रंप निराश हैं।
पिछले महीने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को बुला कर ट्रंप ने कड़े शब्दों में फटकार लगाई थी। यूक्रेन को दी जाने वाली अमेरिकी मदद पर रोक लगा दी गई है। इससे उम्मीद बनी थी कि रूस, अमेरिका की युद्ध विराम संबंधी शर्तें मान जाएगा, मगर उसने अपनी शर्त रख दी कि सभी नाटो देश यूक्रेन को सैन्य मदद और गोपनीय सूचनाओं पर रोक लगाएं, तभी वह युद्ध विराम पर विचार कर सकता है। यह अमेरिका के लिए कठिन ही नहीं, शायद कभी पूरी न हो सकने वाली शर्त है। ऐसे में ट्रंप ने अब रूस पर नकेल कसने का रास्ता चुना है। मगर यह रास्ता भी उनके लिए कितना आसान और कारगर साबित होगा, कहना मुश्किल है।
अमेरिका की नई धमकी से बढ़ी भारत की चिंता
अमेरिका की नई धमकी से भारत की चिंता जरूर कुछ बढ़ गई है, क्योंकि सचमुच अगर वह ऐसा करता है, तो भारत की तेल कंपनियों के लिए रूस से तेल खरीदना मुश्किल हो जाएगा। अभी भारत सबसे अधिक कच्चा तेल रूस से खरीदता है। पहले ईरान और खाड़ी देशों से खरीदता था, मगर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद भारतीय तेल कंपनियों ने वहां से तेल खरीदना बंद करके रूस से खरीदना शुरू कर दिया था। इस तरह कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से महंगाई तेजी से बढ़ेगी, जिसका अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
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हालांकि भारतीय तेल कंपनियां अभी समझ नहीं पा रही हैं कि अमेरिका का अतिरिक्त शुल्क लगाने का ढांचा क्या होगा, इसलिए वे इसे अधिक चिंता का विषय नहीं मान रही हैं, पर जिस तरह पहले ही पारस्परिक शुल्क नीति के तहत अमेरिका ने भारी शुल्क थोप दिए हैं, उससे भारत के लिए संतुलन बिठाना कठिन हो रहा है। यह नया शुल्क और परेशान करने वाला साबित हो सकता है।
ट्रंप प्रशासन के लिए शुल्क नीति पर लंबे समय तक कायम रह पाना कठिन
मगर ट्रंप प्रशासन के लिए भी अपनी शुल्क नीति पर लंबे समय तक कायम रह पाना कठिन होगा। इसे लेकर अमेरिका में ही विरोध हो रहा है। इसलिए कि पारस्परिक शुल्क के चलते अमेरिकी कारोबार पर भी बुरा असर पड़ सकता है। जिन चीजों के लिए अमेरिका दूसरे देशों पर निर्भर है, उनकी कीमतें बढ़ेंगी, तो वहां भी महंगाई बढ़ेगी। ऐसे में अमेरिकी लोगों का विरोध लंबे समय तक सहन कर पाना ट्रंप के लिए आसान नहीं होगा। वहां के मध्यावधि चुनाव में ट्रंप की पार्टी के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। फिर यह भी कि ट्रंप के नए ऐलान से रूस कितने दबाव में आ पाएगा, कहना मुश्किल है।
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यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ जैसा व्यवहार ट्रंप ने किया, उससे ज्यादातर पश्चिमी देश नाराज हैं। इसलिए रूस-यूक्रेन संघर्ष रुकवाने का उनका दावा कमजोर पड़ता जा रहा है। दोनों देशों के बीच चल रहा संघर्ष निश्चित रूप से रुकना चाहिए, यह दुनिया की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है। मगर धौंस और धमकी के सहारे ऐसा हो पाना शायद ही संभव हो, इसके और उलझने की आशंका बनी रहेगी।