पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही है। जिस वायु को हम प्राणदायिनी मानते हैं, वही प्राण लेने लगे तो इसकी वजह क्या है, यह जानने की कोशिश हम नहीं करते। वायु प्रदूषण कितना घातक है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदूषक तत्त्व हर क्षण हमारे शरीर के भीतर जा रहे हैं और हमारी रक्त धमनियों से होते हुए शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों तक पहुंच रहे हैं। इसका किस कदर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, इस पर कई अध्ययन सामने आ चुके हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बार-बार वायु प्रदूषण के प्रति आगाह किया है। वैश्विक स्तर पर मौत का यह तीसरा प्रमुख कारण है। बावजूद इसके, दुनिया के ज्यादातर और विशेष रूप से कुछ बड़े देश लापरवाही बरत रहे हैं। प्रदूषण का असर फेफड़े और सांस संबंधी बीमारियों तक सीमित नहीं है। दिल्ली में पिछले दिनों स्वास्थ्य पर आयोजित एसोचैम के सम्मेलन में आगाह किया गया कि प्रदूषण से दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ रहा है।

फेफड़े से लेकर ह्रदय पर भी वायु प्रदूषण का प्रभाव

वायु गुणवत्ता और प्रदूषण के बीच संतुलन की लकीर खींचते हुए हम अभी तक फेफड़े पर बढ़ते दबाव को लेकर ही चिंतित रहे हैं, लेकिन इसका हृदय पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस पर कभी ध्यान नहीं गया।

वायु गुणवत्ता पर जोर देते समय हमें अब हृदय स्वास्थ्य के प्रति भी सजग रहना होगा, क्योंकि वायु प्रदूषण के दौरान घातक सूक्ष्म कण निरंतर रक्त प्रवाह में शामिल होते रहते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ये कोलेस्ट्राल को आक्सीकृत कर देते हैं, जिससे धमनी पट्टिका के फटने की स्थिति पैदा हो जाती है और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है।

अपराधियों के भीतर पुलिस और कानून का नहीं रहा कोई खौफ, केवल नारों से स्थापित नहीं होता सुशासन

अगर जीवन प्रत्याशा को कम होने से बचाना है, तो वायु प्रदूषण की चुनौतियों से जमीनी स्तर पर लड़ना होगा। बेहतर होगा कि लोग विलासिता को त्याग कर प्रकृति से जुड़ें। विशेषज्ञ आए दिन इस संदर्भ में चेताते रहे हैं, लेकिन सवाल है कि इस गहराती समस्या का हल क्या है। जब तक इस समस्या के दूरगामी और स्थायी समाधान के व्यावहारिक रास्ते नहीं सुझाए जाते, तब तक केवल समस्याओं की पहचान का कुछ ठोस हासिल नहीं होगा।