दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के मकसद से कारों को सम-विषम नंबर के हिसाब से एक रोज के अंतर पर चलने देने का कार्यक्रम पूरा होते ही यह सवाल उठना लाजिमी है कि यह कितना सफल रहा? क्या इसे जारी रखा जाना चाहिए? प्रदूषण घटाने के और क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं? जब दिल्ली सरकार ने एक जनवरी से पंद्रह जनवरी के बीच कारों को सम-विषम फार्मूले से चलने देने के अपने फैसले की घोषणा की, तो उसकी व्यावहारिकता पर बहुत सवाल उठे थे। लेकिन इसे लोगों का आशातीत समर्थन और सहयोग मिला। दरअसल, वायु प्रदूषण का मसला सीधे लोगों की सेहत से जुड़ा हुआ है, और दिल्ली की हवा कैसी खतरनाक हो चुकी है इसे दिल्लीवासी रोजाना के अपने अनुभव से जानते हैं। इसलिए उन्होंने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि साफ-सुथरी हवा के लिए वे थोड़ी असुविधा भी हो तो उसे झेलने को तैयार हैं।

फिर, दिल्ली सरकार की यह मुहिम कारों तक सीमित थी। उसमें भी वीआईपी से लेकर महिला चालकों तक कई श्रेणियों के लिए छूट दी गई थी। इसके अलावा, लोग जानते थे कि यह प्रयोग केवल एक पखवाड़े के लिए है। नियम का उल्लंघन करने पर चालान और जुर्माने के डर ने भी किसी हद तक असर डाला होगा। मुहिम को प्रभावी बनाने के लिए असाधारण इंतजाम किए गए। अतिरिक्त बसें उतारी गर्इं। यातायात पुलिस के अलावा हजारों वालंटियर तैनात थे। सम-विषम प्रयोग की कामयाबी से उत्साहित केजरीवाल सरकार ने सत्रह जनवरी को दिल्ली के छत्रपाल स्टेडियम में धन्यवाद रैली का आयोजन किया है। पर सम-विषम की सफलता का दावा करना अभी जल्दबाजी होगी। इस फार्मूले के लागू रहने के दौरान दिल्ली में कारों की बिक्री में कोई कमी नहीं आई, उलटे कार की बिक्री का ग्राफ कुछ ऊपर ही चढ़ा। क्या इस फार्मूले ने कई लोगों को सम या विषम नंबर वाली एक अतिरिक्त कार खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया होगा? यह पड़ताल से ही पता चलेगा, पर बेजिंग का सम-विषम नियम का अनुभव यही बताता है कि नियम लागू होने के दो साल बाद सड़कों पर कारों की संख्या फिर उतनी ही हो गई।

अध्ययन बताते हैं कि सम-विषम फार्मूला लागू रहने के दौरान दिल्ली में वायु प्रदूषण में कोई खास कमी नहीं आई, अलबत्ता सड़क जाम से जरूर राहत मिली। दरअसल, वायु प्रदूषण कई और चीजों पर भी निर्भर करता है। मसलन, हवा की गति, मौसम आदि पर। फिर, अन्य वाहन भी कॉर्बन उत्सर्जन का जरिया हैं, जबकि दिल्ली सकार का कार्यक्रम कारों तक सीमित था। वाहनों के अलावा बेलगाम चलते निर्माण-कार्य और जेनरेटर आदि भी प्रदूषण के स्रोत हैं। लिहाजा, सम-विषम प्रयोग के बाद वायु प्रदूषण से निपटने के व्यापक, ज्यादा कारगर और ज्यादा दूरगामी उपायों पर सोचने की जरूरत है। दिल्ली के लोगों ने बता दिया है कि वे सहयोग के लिए तैयार हैं। न्यायपालिका का भी साथ मिला। कार-पूलिंग करने वालों में दिल्ली सरकार के मंत्री ही नहीं, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जज भी शामिल थे। सम-विषम फार्मूले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करके भी सर्वोच्च अदालत ने अपना संदेश दिया। अब दिल्ली सरकार को राजधानी में सार्वजनिक परिवहन की क्षमता तथा दायरा बढ़ाने और उसे अधिक सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।