वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच चल रहे विवादों के सुलझने की एक बार फिर उम्मीद बनी है। ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति के बीच संक्षिप्त बातचीत हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने अपने अधिकारियों से सीमा विवाद सुलझाने को कहने का आश्वासन दिया। हालांकि ब्रिक्स सम्मेलन से पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि जब दोनों नेता वहां मिलेंगे, तो वास्तविक नियंत्रण रेखा के विवादों पर विस्तार से बात करेंगे। मगर ऐसा अवसर नहीं बन पाया। फिर भी सम्मेलन से इतर दोनों नेताओं ने इस संबंध में बातचीत की और उनका रुख सकारात्मक देखा गया।
दोनों देशों के रिश्तों में बना उत्साह का माहौल
इससे यह संकेत साफ है कि दोनों के रिश्तों में वैसी खटास नहीं है, जैसी आमतौर पर दो देशों के बीच सीमा विवाद के चलते देखी जाती है। चीन ने भी भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाए रखने पर जोर दिया। इससे पहले दोनों नेता पिछले साल जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया में मिले थे। ब्रिक्स सम्मेलन में इनके मिलने से पहले इस मुद्दे पर दोनों देशों के वरिष्ठ सेनाधिकारियों की उन्नीसवें दौर की दो दिवसीय बातचीत हो चुकी थी, जिसमें विवाद खत्म करने का सकारात्मक संकेत दिखाई दिया था।
2020 में गलवान घाटी में घुस आए चीनी सैनिकों की वजह से हुआ था संघर्ष
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवाद भारत की तरफ से पैदा नहीं हुआ है। चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत भारत के अधिकार वाले क्षेत्रों में घुसपैठ और कब्जा करने का प्रयास करता रहता है। इसी के कारण 2020 में चीनी सैनिक गलवान घाटी में घुस आए थे, जिसे लेकर संघर्ष हुआ और दोनों तरफ के सैनिक मारे गए थे। तबसे दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। चीन ने भारत के हिस्से वाली कुछ जमीन पर अपने सैनिकों की तैनाती कर रखी है, जिसकी वजह से पहले जहां तक भारतीय सैनिक गश्ती किया करते थे, वहां तक नहीं जा पाते। गलवान, डेपसांग, डोकलाम, तवांग जैसे कई इलाकों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ बताई जाती है। भारत चाहता है कि उन इलाकों में यथास्थिति बहाल हो।
हालांकि दोनों देशों ने बातचीत के आधार पर कुछ इलाकों से अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटाया है, मगर अब भी कई इलाके विवादित हैं। ये विवाद सुलझाने पर सहमति बनने की उम्मीद इस बात से नजर आती है कि चीन ने कभी बातचीत से अलग होने की कोशिश नहीं की। हालांकि वह अपनी शर्तों और जिद पर कायम रहता है, पर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहे, तो समाधान का रास्ता भी बनेगा।
अगले महीने भारत जी-बीस सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। उस दौरान भी दोनों देशों के नेता मिलेंगे। चीन बेशक अपनी विस्तारवादी नीति के तहत भारत पर दबाव बनाने और उसके इलाके में घुसपैठ की कोशिश करता है, पर उसे अच्छी तरह मालूम है कि भारत की हैसियत अब वैसी नहीं है कि उस पर दबाव बनाया जा सके। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ विज्ञान और तकनीक के मामले में भारत निरंतर आत्मनिर्भर हो रहा है।
व्यापार वाणिज्य के मामले में भी चीन पर उसकी निर्भरता कम हो रही है। सामरिक शक्ति के पैमाने पर वह चीन को टक्कर देने लगा है। ऐसे में वह भारत से अपने रिश्ते खराब कभी नहीं करना चाहेगा। आज भी भारत, चीन के लिए एक बड़ा बाजार है। ऐसे में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवादों को सुलझाने में बेशक कुछ देर हो, पर इसे लेकर नाउम्मीद बिल्कुल नहीं हुआ जा सकता।