कई देशों में तेजी से बढ़ते तापमान के बीच एक अध्ययन सामने आया था कि जलवायु परिवर्तन का असर पृथ्वी पर दिखने लगा है। आज दुनिया के कई देश गर्मी से बेहाल हैं। भारत में भी पिछले साल रेकार्ड गर्मी पड़ी। कई राज्यों में पारा पचास के आसपास पहुंच गया। मई-जून की तपती गर्मी आगे भी बनी रही। जुलाई और सितंबर में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहा। यह विचित्र बात है कि मानसून के बाद चार महीने अब तक के सबसे गर्म महीने दर्ज किए गए। क्या जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्पष्ट होकर सामने आने लगा है?
गौरतलब है कि वर्ष 1901 के बाद वर्ष 2024 भारत में सबसे गर्म वर्ष रहा। मौसम विज्ञान विभाग की ओर से दी गई इस जानकारी को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इसने यह बता कर भी चिंता बढ़ा दी है कि इस वर्ष जनवरी के दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने के आसार हैं। मौसम का मिजाज क्यों बदल रहा है और धरती का तापमान क्यों बढ़ रहा है, इसे समझने की आवश्यकता है। यह जरूरी इसलिए भी है कि पिछले साल धरती का तापमान 0.54 डिग्री अधिक दर्ज किया गया।
भारत समेत दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही गर्मी
कुछ महीने पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भुवनेश्वर के एक शोध में पाया गया कि शहरीकरण की वजह से देश के 140 शहरों की रातें उनके आसपास के गैर-शहरी क्षेत्रों की तुलना में साठ फीसद गर्म है। यह समस्या केवल भारत की ही नहीं है। न केवल एशिया, बल्कि पश्चिमी देशों से लेकर दक्षिणी गोलार्ध में अंटार्कटिका तक इसकी आंच पहुंच रही है। सवाल है कि क्या हमने प्रकृति पर अधिक बोझ डाल दिया है।
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दरअसल, जीवाश्म ईंधनों के बेतहाशा इस्तेमाल, जंगलों की कटाई और विकास के नाम पर शहरीकरण को बढ़ावा न दिया गया होता, तो धरती संभवत: कुछ ठंडी होती। मगर मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए जलवायु को संकट में डाल दिया। इसी का परिणाम है कि प्रकृति अब अपना आक्रोश प्रकट करने लगी है। नतीजा यह कि दुनिया में कहीं अधिक गर्मी, तो कहीं ज्यादा सर्दी पड़ रही है। अब इस मसले पर वैश्विक स्तर पर ठोस पहल करने की जरूरत सिर पर आ खड़ी हुई है।