महिला पहलवान विनेश फोगाट के पेरिस ओलंपिक में अंतिम दौर से ऐन पहले, वजन अधिक होने के कारण, अयोग्य करार दिए जाने से स्वाभाविक ही सारे देश को निराशा हुई है। पूरे खेल के दौरान जिस तरह विनेश ने बेहतरीन प्रदर्शन किया उससे उनसे देश के लिए स्वर्ण पदक लाने की उम्मीद बनी हुई थी। वे अब तक की अपराजेय जापान की युई सुसाकी को हरा कर सेमीफाइनल में पहुंची थीं। सेमीफाइनल में उन्होंने क्यूबा की गुजमैन लोपेज को हराया था। ये दोनों खिलाड़ी दुनिया की श्रेष्ठ खिलाड़ियों में गिनी जाती हैं। युई सुसाकी तो अब तक किसी मुकाबले में पराजित नहीं हुईं।

इस निर्धारित पचास किलोवर्ग में करीब सौ ग्राम अधिक था। दरअसल, विनेश पहली बार पचास किलोवर्ग में खेल रही थीं। इससे पहले वे तिरपन किलोवर्ग में खेलती थीं। भारतीय ओलंपिक संघ के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने विनेश का वजन पचास किलो के भीतर बनाए रखने की भरसक कोशिश की, मगर फिर भी कहीं कोई चूक रह गई। चूंकि विनेश पर विशेष रूप से सबकी नजरें टिकी थीं, इसलिए उनकी अयोग्यता को कुछ लोग राजनीतिक रंग देते भी देखे जा रहे हैं।

खेल में हार और जीत चलती रहती है, मगर कोई खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करते हुए अंतिम दौर में पहुंच कर कुछ तकनीकी खामियों के चलते खेलने से रोक दिया जाए, तो उसकी टीस उसके भीतर जीवन भर बनी रहती है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि महिला पहलवानों के लिए पचास किलो से नीचे वजन लाना कठिन होता है, पर यह सवाल तो बना ही है कि आखिर विनेश के साथ गया विशेषज्ञों का दल कैसे तकनीकी पक्षों पर ध्यान देने से चूक गया। विनेश के साथ उनके कोच, मैनेजर, आहार विशेषज्ञ भी गए होंगे। उन्हें कहीं न कहीं तो भरोसा रहा होगा कि विनेश तिरपन किलो से पचास किलो भार वर्ग में उतर कर खेल सकती हैं। मगर इसके लिए वजन घटाने की जिस तैयारी की जरूरत थी, वह कैसे नाकाम रही, यह जांच का विषय है। अब विनेश कोई पदक नहीं ला सकेंगी। इस तरह देश भी एक पदक से चूक गया।

विनेश को लेकर राजनीति इसलिए भी शुरू हो गई कि वे महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वालों की अगली कतार में थीं। उन्हें आंदोलन के दौरान पुलिस की ज्यादतियां भी सहनी पड़ीं, कई तरह के मानसिक दबावों से गुजरना पड़ा। इस तरह उन्हें सत्ता विरोधी मुहिम का हिस्सा मान लिया गया था। विपक्षी दलों ने उन्हें खुल कर समर्थन दिया। तब कहा गया कि विनेश में अब ओलंपिक में खेलने की क्षमता नहीं रह गई है, इसलिए वे राजनीति के रास्ते पर चल पड़ी हैं।

हालांकि लंबे समय तक आंदोलन में संघर्ष करते रहने की वजह से उनके नियमित अभ्यास में बाधा आई थी, मगर उन्होंने आखिरकार साबित किया कि उनकी क्षमता कहीं से कम नहीं हुई है। बेशक वे तकनीकी वजहों से अंतिम दौर में खेलने से रह गईं, पर इसके पहले के खेलों में जिस तरह उन्होंने अपने कौशल और क्षमता का प्रदर्शन किया, वह अपने आप में एक कीर्तिमान है। मगर, उन्हें जिस तरह से अयोग्य ठहराया गया, उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बात की जांच तो होनी ही चाहिए कि विनेश के साथ गए अधिकारियों से चूक कहां हुई।