मुग्धा

एक शोध के मुताबिक लगभग साठ फीसद बच्चे अपने माता-पिता या अभिभावक को अपने विचार सोलह आना सच नहीं बता पाते और उसका परिणाम होता है माता-पिता में अनुमान लगाने या बच्चे के लिए गलतफहमी तैयार कर लेने की मानसिकता। फिर एक संघर्ष आरंभ हो जाता है। बच्चे भी धीरे-धीरे अपने चेहरे पर मुखौटा पहनना सीख लेते हैं। तब ऐसा होता है कि नकारात्मक खबरें आती है, जैसे कि बच्चे ने कक्षा में अपने मित्र को किसी हथियार से मार दिया या वह किशोर हुआ तो माता-पिता पर हाथ उठाने लगा, अपराध करने लगा, नशे में रहने लगा आदि।

आजकल अभिभावकों की दशा भी सुखद और सामान्य कतई नहीं है। स्कूल या कोचिंग में हर जगह तकनीक प्रभाव और घर पर एकाकी जीवनशैली वाली बेहद तनावपूर्ण जिंदगी में बच्चे आमतौर पर सुकून में नहीं हैं। दस में सात बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल किशोर होते-होते भटकते जा रहे हैं। बच्चों को अनुशासित करने के लिए अभिभावक भी सब जगह शोर-शराबा करके किसी मनोवैज्ञानिक या सलाहकार की शरण लेते हैं, जो कई बार उनके बच्चे को अपमानित करने वाला साबित हो सकता है।

अभिभावक यह कहकर खुश हो सकते हैं कि हम अच्छा खिलाते और पहनाते हैं, पर इससे बच्चे का पूरा व्यक्तित्व नहीं बनता। वह आपकी देखभाल और आचरण से खुद ही परिपक्व हो जाएगा। एक बार एक कस्बे की यात्रा के दौरान एक परिवार को देखा कि वहां बच्चे के मस्तक या माथे पर चुंबन देने के लिए अभिभावक किसी मुहूर्त की प्रतीक्षा नहीं करते। वे हर समय ही भरपूर प्यार लुटाते हैं और जब भी उनके बच्चो को समय हो तो पंछियों को पानी देने या दाना खिलाने को कहते हैं। पता लगा कि उनकी देखादेखी पड़ोस में बाकी लोग भी करने लगे और सचमुच उनके बच्चे में भी बदलाव आने लगा।

दरअसल, बहुत कीमती प्ले स्कूल, महंगा खिलौना, पार्क की सैर या बेशकीमती चाकलेट की जगह बच्चे के मन की बात सुनकर भी उसका गुस्सा कम किया जा सकता है। बच्चे तब ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं, जब उनकी बात को माता-पिता सुनते नहीं हैं। बाल मनोवैज्ञानिक कैलस डिथो और थार्नडाइक ने प्रयोग किया कि बेहद शोर करने वाले और जिद्दी बच्चों को अक्सर इनाम दिए गए जब वे कुछ न कुछ कहानी या घटना सुनाते थे। धीरे-धीरे यह सकारात्मक असर हुआ कि चीखने वाले सभी बच्चे एकदम सामान्य और सहज होते चले गए। कारण यही था कि घर में उनको सब कुछ मिल जाता था, पर उनके किसी अनुभव या उनकी दो पंक्तियों की बात को कोई ठहर कर सुनता नहीं था।

बाल मनोवैज्ञानिक दावा करते है कि जब जब अभिभावक बच्चों की छोटी-बड़ी बात पर गौर करने लगेंगे, तो उनका उग्र और शरारती स्वभाव शांत होगा। इसके अलावा, जिन बच्चों की नींद अच्छी तरह से पूरी होती है, उनमें गुस्सा कम होता है। व्यायाम करने, खेलने-कूदने हंसने या उत्साहित होने से बच्चों का गुस्सा कम हो जाता है। बच्चे के मानसिक और शारीरिक बदलाव को माता-पिता समझेंगे, तो उन्हें उन पर विश्वास हो सकेगा, वे उग्र नहीं बनेंगे। बाल मनोवैज्ञानिक एमिली कैथरीन कहती हैं कि अपने बच्चे को यह जताएं कि वे जैसे हैं, उसी रूप में आप उनसे प्यार करते हैं।

नसीहत देने के बजाय उसकी पूरी बात सुनें। फिर देखिए कैसे वे खुद ही आकर अपनी भावनाओं, मन की बात आपसे साझा करेंगे। इससे उनका मनोबल भी बढ़ेगा कि जब भी वे किसी मुसीबत में होंगे, तो आप उनके लिए हमेशा खड़े होंगे। मनोवैज्ञानिक एडलर कहते हैं कि हर बार अपमानित करने या चुभने वाले शब्दों का प्रयोग बच्चों को आपसे दूर तो करता ही है, साथ ही वे खुद के भीतर एक कुंठित भावना विकसित कर लेते हैं।

जबकि सहजता से सकारात्मक या सामान्य शब्द बच्चों को आत्मविश्वासी, खुश होने के साथ अच्छा बर्ताव करने में मददगार होते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। इससे उन्हें बड़े होकर कड़ी मेहनत करने और सफलता पाने में आसानी होती है। बच्चों को अधिक रोकने-टोकने से वे और भी ज्यादा बदमाशियां करते हैं। अपनी मर्जी से वे जो भी करना चाहते हैं, थोड़ी देर के लिए ऐसा करने देना चाहिए। जब उनका मन भर जाएगा, तो खुद ब खुद उस काम को करना बंद कर देंगे। उन्हें डांटने की बजाय प्यार से समझाने की जरूरत होती है।

एक अभिभावक बच्चों की पसंद से खिलौने खरीद रहे थे। एक हथौड़ा, प्लास्टिक के गिलास, छोटे-छोटे बैग और बहुत सारे डब्बे। बाद में पता लगा कि मजबूत हथौड़ा कील ठोंकने के लिए, डिब्बे गौरैया का घोंसला बनाने के लिए, गिलास पंछी के लिए पानी भरकर रखने के लिए खरीदा गया था। ये बच्चे इतने समझदार इसलिए हुए कि उनके अभिभावक ने परवरिश इतनी शानदार ढंग से की थी। बच्चे बस यह भरोसा चाहते है कि आप उनको बवाल, मुसीबत या जिम्मेदारी नहीं, बल्कि अपना हिस्सा मानते हैं। हजारों रुपए की चाकलेट नहीं, आपके बच्चे को प्यार और लगाव भरा आलिंगन चाहिए।