एक बार संसद में अक्साई चिन की सुरक्षा पर चल रही बहस में जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने थोड़ा गुस्से में कहा था कि वहां एक तिनका तक नहीं उगता, तब एक वरिष्ठ विरोधी सांसद की वह हाजिरजवाबी हमें आज भी गुदगुदा देती है। उन्होंने अपने गंजे सिर को आगे करते हुए बड़ी मासूमियत से कहा था, ‘प्रधानमंत्री जी, उगता तो मेरे सिर पर भी कुछ नहीं है, लेकिन क्या इसीलिए मैं इसे दुश्मन के हवाले कर दूं।’ दरअसल, इस तरह के वृत्तांत एक सहज हास्यबोध के चलते ही पनपते हैं, जो यह भी बताते हैं कि हमारे जीवन में हास्यबोध यानी ‘सेंस आफ ह्यूमर’ कितना महत्त्व रखता है।

लोकजीवन में हास्य की सृष्टि का एक बड़ा आधार आपसी नोकझोंक और हाजिर जवाबी रही है। जीवन जटिल है, पर इतना भी नहीं कि हम उसे उदासी और गंभीरता का ऐसा आवरण पहना दें कि उसकी प्राकृतिक खूबसूरती से ही वंचित रह जाएं। जीवन न तो अच्छा है, न बुरा। यह वही है जो हम इसे बनाते हैं। अगर किसी ने हमेशा जीवन के स्याह पक्ष को देखने का दृष्टिकोण विकसित कर लिया है, तो उल्लास के क्षणों में भी वह दुखों से घिरा रहेगा।

हमें हल्के-फुल्के पलों का आनंद लेने की कोशिश करनी चाहिए, अन्यथा जीवन की यही जटिलताएं हमें कटुता में डुबो सकती हैं। हम हर दिन छोटी-मोटी कई चुनौतियों का सामना करते हैं, लेकिन जिस तरह से हम उनका जवाब देना चाहते हैं, वही स्थिति के बनने-बिगड़ने का अंतर पैदा करता है। हास्य की भावना में किसी भी खराब स्थिति को श्रेष्ठ बनाने की शक्ति होती है। इंटरनेट के इस जमाने में ‘स्टैंडअप कामेडी’ और सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर चुटकुलों के नए अंदाज ने हमारी विनोद वृत्ति में बहुत परिवर्तन ला दिया है।

किसी दौर में राजा-महाराजा, बादशाह, सुल्तान और नवाब अपने-अपने दरबारों, राजसभाओं में कुछ विदूषक या मसखरे अवश्य रखते थे। ये विदूषक अत्यंत बुद्धिमान और बाल की खाल निकालने में चतुर होते थे। राजकाज की उलझनों में झुंझलाए शासक इन विदूषकों की संगति में थोड़ी देर रहकर ही अपने मन-मस्तिष्क का भार हल्का कर लेते थे।

सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक बीरबल और दक्षिण भारत के विजय नगर राज्य के शासक महाराज कृष्णदेव के सलाहकार दरबारी तेनालीराम के नाम से तो भारत का बच्चा-बच्चा परिचित है। ऐसे ही तुर्किए, यूनान, ईरान और मिस्र आदि देशों में जनता का मनोरंजन करने और अत्याचारी शासकों की नाक में दम कर देने वाले ख्वाजा नसीरुद्दीन के सहज हास्यबोध का आज भी दुनिया में डंका बजता है। हमारी लोक संस्कृति में भी हास्य और विनोद का पुट हर जगह मिलता है।

हास्यबोध दिमाग से सभी अवसादग्रस्त और नकारात्मक विचारों को एक तरह से छान देता है। हालांकि यह जीवन में आने वाली समस्याओं और प्रतिकूल परिस्थितियों का समाधान नहीं है, फिर भी सहज हास्यबोध को प्रदर्शित करने से उनसे निपटने के लिए उल्लेखनीय शक्ति और ऊर्जा अवश्य मिलती है। आनंददायक हास्य हमारे भीतर और आसपास की नकारात्मक तरंगों को बाहर कर देता है। यह एक उत्कृष्ट कौशल है, जिसके माध्यम से हम अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में थोड़ा मजा जोड़ सकते हैं।

मजाकिया लोग काम में संतुलन कर पाते हैं और तुलनात्मक तौर पर बेहतर कर्मचारी साबित होते हैं। इसके अलावा, एक अच्छा हास्यबोध हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। अच्छी यादें साझा करने और सकारात्मक रूप से हंसने से रिश्ते मजबूत और विकसित होते हैं। इससे सामाजिक संपर्क का दायरा बढ़ता है और लोग जुड़ने लगते हैं। बातचीत में हास्य को बुद्धि से अधिक मूल्यवान और सहजता को ज्ञान से अधिक माना जाता है। यह खराब स्थिति को भी सहनीय बना सकता है। यह हमें समझदार बनाए रखने में भी मदद करता है और डर को शांत करता है। हास्य हमारे मिजाज को बदलने की कुंजी है।

कई बार ऐसा होता है कि किसी छोटी-सी समस्या को हम बेहद बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे होते हैं या संशयों से भरी कोई बात हमारे लिए जी का जंजाल बन जाती है, ऐसे में विनोदवृत्ति से भरपूर कोई हल्की-फुल्की टिप्पणी उस समस्या को वास्तविकता के धरातल पर ले आती है। हो सकता है, हम स्थिति को बदलने में सक्षम न हों, लेकिन हास्य से इसके बारे में अपना दृष्टिकोण बदल सकते हैं।

हास्य सिर्फ अवसाद से ही रक्षा नहीं करता, यह जीवन की समग्र गुणवत्ता में भी सुधार करता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग हास्यवृत्ति रखते हैं, उनमें भरपूर आत्म-सम्मान, अधिक सकारात्मक प्रभाव, चिंता पर बेहतर नियंत्रण होता है। सामाजिक संपर्क में भी उनका प्रदर्शन भरोसेमंद होता है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एडवर्ड डी बोनो का मानना है कि हास्य अब तक मानव मस्तिष्क की सबसे महत्त्वपूर्ण गतिविधि है। याद रखिए, किसी और चीज की तुलना में हास्य में अधिक तर्क है, क्योंकि हास्य ही सत्य है।